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अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का, उन्हें श्रद्धा अर्पित करने का अवसर है पितृपक्ष

कब है पितृपक्ष, क्या है शुभ मुहूर्त, कैसे करें पितरों को प्रसन्न, जानिये इन सभी सवालों के जवाब इस आलेख में

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गिरिडीह : हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। पितृ पक्ष के 15-16 दिनों के दौरान पितरों के सम्मान में तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि किया जाता है। धार्मिक मान्यताएं कहती हैं कि पितृ पक्ष के दौरान पितर पृथ्वी पर आते हैं। तर्पण, श्राद्ध आदि सभी प्रसन्न या असंतुष्ट पितरों के लिए किया जाता है।

दरअसल ‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ से ही बना है। ऋग्वेद में श्रद्धा को ‘देवत्व’ कहा गया है। हमारे ऋषि मुनियों ने श्राद्धों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा है कि श्राद्ध करने से करता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है और पितर संतुष्ट रहते हैं। पितृ दोष से पीड़ित लोग पितृ पक्ष के दौरान इससे छुटकारा पाने के उपाय भी कर सकते हैं। पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध आदि की 16 तिथियां होती हैं। प्रत्येक पूर्वज की अपनी-अपनी निश्चित तिथि होती है जिस दिन उनके लिए तर्पण, श्राद्ध आदि किया जाएगा। जिनकी मृत्यु की तारीख अज्ञात होती है उनके लिए अमावस्या की तिथि तर्पण के लिए शुभ मानी जाती है। आइए आपको भी बताते हैं कि इस वर्ष पितृ पक्ष कब है और कैसे अपने पितरों को, पूर्वजों को अपनी श्रद्धा अर्पित करें और साथ ही आपको ये भी बताते हैं कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितर कितने प्रकार के होते हैं।

2024 में कब है श्राद्ध पक्ष और श्राद्ध मुहूर्त?

कब है पितृपक्ष, क्या है शुभ मुहूर्त, कैसे करें पितरों को प्रसन्न
कब है पितृपक्ष, क्या है शुभ मुहूर्त, कैसे करें पितरों को प्रसन्न

इस वर्ष का पितृ पक्ष 17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से शुरू हो रहा है। इस दिन श्राद्ध पूर्णिमा रहेगी। पितृ पक्ष 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या या आश्विन अमावस्या के दिन समाप्त होता है। 17 सितम्बर को विश्वकर्मा पूजा भी है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 17 सितंबर को प्रातः 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होगा। पूर्णिमा तिथि का समापन 18 सितंबर को सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर होगा। श्राद्ध संपन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण मुहूर्त अच्छा माना गया है।

कुतुप मूहूर्त – प्रातः 11:51 से दोपहर 12:40
रौहिण मूहूर्त – दोपहर 12:40 से 13:29
अपराह्न काल – 13:29 से 15:56

श्राद्ध की प्रमुख तिथियां

  • पितृ पक्ष प्रारंभ, पूर्णिमा का श्राद्ध- 17 सितंबर
  • प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध (पितृपक्ष आरंभ)- 18 सितंबर
  • द्वितीया तिथि का श्राद्ध- 19 सितंबर
  • तृतीया तिथि का श्राद्ध- 20 सितंबर
  • चतुर्थी तिथि का श्राद्ध- 21 सितंबर
  • पंचमी तिथि का श्राद्ध- 22 सितंबर
  • षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध- 23 सितंबर
  • अष्टमी तिथि का श्राद्ध- 24 सितंबर
  • नवमी तिथि का श्राद्ध- 25 सितंबर
  • दशमी तिथि का श्राद्ध- 26 सितंबर
  • एकादशी तिथि का श्राद्ध- 27 सितंबर
  • द्वादशी तिथि का श्राद्ध- 29 सितंबर
  • त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध- 30 सितंबर
  • चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध- 1 अक्टूबर
  • सर्व पितृ अमावस्या, पितृ पक्ष समाप्त- 2 अक्टूबर

 

पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण की विधि

अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का, उन्हें श्रद्धा अर्पित करने का अवसर है पितृपक्ष
अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का, उन्हें श्रद्धा अर्पित करने का अवसर है पितृपक्ष

 
श्राद्ध पक्ष में पितरों को एक विशेष विधि से जल अर्पित किया जाता है और जल अर्पित करने की इसी विधि को तर्पण कहते हैं। इसके लिए हाथ में कुश लेकर उन्हें जोड़ें। अंजुली मुद्रा में जुड़े हाथ में जल लें और जिन्हें अर्पित करना है, उनका ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें ‘ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’” या फिर ‘गायत्री मन्त्र’ बोलते हुए अब अंजुली के जल को धीरे-धीरे अपने अंगूठे का उपयोग करते हुए 5, 7 या 11 बार जमीन पर चढ़ाएं।

 

कितने प्रकार के होते हैं पितर
शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा के ऊपर एक और लोक है, जिसे पितरों का लोक माना जाता है। पुराणों के अनुसार पितरों को दो भागों में बांटा गया है। एक हैं दिव्य पितर  और दूसरे हैं मनुष्य पितर। दिव्य पितर मनुष्य और जीवित प्राणियों के कर्मों के आधार पर उनका न्याय करते हैं।

 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए नव बिहान उत्तरदायी नहीं है। 

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