Nav Bihan
हर खबर पर पैनी नजर

रथयात्रा से पहले जगन्नाथ मंदिर में होते हैं कई अनुष्ठान

27 जून से शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, पढ़िए नव बिहान की विशेष रिपोर्ट

7

नव बिहान डेस्क : पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रथ यात्रा से पहले कई महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जो इस पवित्र उत्सव की तैयारियों का हिस्सा हैं। ये अनुष्ठान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के सम्मान में आयोजित किए जाते हैं। इस आलेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को इन अनुष्ठानों और उनकी शुरुआत का विवरण देने का प्रयास कर रहे हैं।

रथ यात्रा से पहले के प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान

रथ निर्माण (Rath Nirman)

27 जून से शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, पढ़िए नव बिहान की विशेष रिपोर्ट
27 जून से शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा

 

रथ यात्रा के लिए तीन विशाल रथों का निर्माण किया जाता है— भगवान जगन्नाथ के लिए नंदीघोष, बलभद्र के लिए तालध्वज और सुभद्रा के लिए देवदलन। इन रथों का निर्माण पारंपरिक रूप से लकड़ी से किया जाता है, बिना किसी कील या लोहे के उपयोग के। रथों को रंग-बिरंगे कपड़ों और फूलों से सजाया जाता है। रथ निर्माण की प्रक्रिया अक्षय तृतीया (वैशाख माह, अप्रैल-मई) से शुरू होती है। इस दिन लकड़ियों का पूजन किया जाता है, जो वसंत पंचमी के दिन से इकट्ठा की जाती हैं। यह अनुष्ठान भगवान की यात्रा के लिए पवित्र वाहन तैयार करने का प्रतीक है।

स्नान यात्रा (Snana Yatra)

यह अनुष्ठान ज्येष्ठ पूर्णिमा (मई-जून) को आयोजित होता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को मंदिर के उत्तरी कुएं से लाए गए 108 घड़ों के पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान को “महास्नान” कहा जाता है। स्नान यात्रा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। यह रथ यात्रा से लगभग 16-18 दिन पहले होती है। इस स्नान के बाद भगवान को ठंडे जल के कारण “बीमार” माना जाता है, और वे 15 दिनों के लिए अनवसर (Anvasara) काल में विश्राम करते हैं, जब मंदिर के पट भक्तों के लिए बंद रहते हैं। इस दौरान भगवान की विशेष देखभाल की जाती है।

अनवसर (Anvasara)

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

 

स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को 15 दिनों के लिए गर्भगृह में रखा जाता है, जहां उनकी आयुर्वेदिक औषधियों और विशेष पूजा के साथ देखभाल की जाती है। इस दौरान भक्तों को दर्शन की अनुमति नहीं होती। यह प्रथा स्नान यात्रा के तुरंत बाद शुरू होती है, जो ज्येष्ठ पूर्णिमा को होती है। इस अवधि में भगवान को स्वस्थ होने का समय दिया जाता है, और यह उनके मानवीय रूप का प्रतीक है।

नेत्रोत्सव (Netrotsav)

अनवसर के 14वें दिन, भगवान के स्वस्थ होने के बाद उनकी आंखों में काजल लगाया जाता है और चंदन-सिंदूर का तिलक किया जाता है। इसके बाद भक्तों को नव यौवन दर्शन प्राप्त होते हैं, जब भगवान फिर से सार्वजनिक दर्शन के लिए तैयार होते हैं। यह अनुष्ठान स्नान यात्रा के बाद 15वें दिन, रथ यात्रा से ठीक एक दिन पहले होता है। यह भगवान के पुनर्जन्म और उनके भक्तों के साथ पुनर्मिलन का प्रतीक है।

पहंडी बिजे (Pahandi Bije)

रथ यात्रा के दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को उनके गर्भगृह से रथों तक एक भव्य जुलूस में ले जाया जाता है। इस प्रक्रिया को पहंडी बिजे कहा जाता है। यह अनुष्ठान रथ यात्रा के दिन (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया) को होता है। यह भक्तों के लिए एक रोमांचकारी अनुष्ठान है, जिसमें लाखों भक्त भगवान को रथों तक ले जाते हुए देखते हैं।

छेरा पंहारा (Chera Pahara)

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

 

रथ यात्रा शुरू होने से पहले पुरी के गजपति महाराज स्वर्ण झाड़ू (सोने की झाड़ू) से रथों और रास्ते की सफाई करते हैं। यह अनुष्ठान भगवान के प्रति राजा की विनम्र सेवा का प्रतीक है। यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है और रथ यात्रा के दिन संपन्न होती है। यह भगवान के प्रति नम्रता और समर्पण को दर्शाता है।

इन अनुष्ठानों की शुरुआत

जगन्नाथ रथ यात्रा और इसके पूर्व के अनुष्ठानों की परंपरा बहुत प्राचीन है। इतिहासकारों के अनुसार, यह परंपरा 12वीं शताब्दी या उससे पहले से चली आ रही है। कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसकी शुरुआत राजा इंद्रद्युम्न और उनकी पत्नी गुंडिचा के समय से मानी जाती है, जब रानी गुंडिचा ने भगवान के दर्शन को सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए रथ यात्रा शुरू करने का अनुरोध किया था। साथ ही, स्कंद पुराण जैसे शास्त्रों में रथ यात्रा का उल्लेख है, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है। स्नान यात्रा, अनवसर, और नेत्रोत्सव जैसे अनुष्ठान भी इस परंपरा का हिस्सा हैं और सदियों से प्रचलित हैं।

रथ यात्रा से पहले के ये अनुष्ठान भगवान जगन्नाथ की भक्ति और उनके मानवीय रूप को दर्शाते हैं, जो भक्तों के बीच उनकी उपस्थिति को और भी खास बनाते हैं। इन अनुष्ठानों की शुरुआत वैदिक और पौराणिक काल से जुड़ी है, और ये पुरी के जगन्नाथ मंदिर की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

Comments are closed.