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ये पब्लिक है, ये सब जानती है भाई

मतदान ख़त्म, अब दावों–प्रतिदावों, जोड़–घटाव का दौर शुरू, सभी को जीत का भरोसा

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आलोक रंजन

 

गिरिडीह : कोडरमा लोकसभा और गान्डेय विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं ने अपना फैसला सुना दिया है, अब बस जनता के फैसले के सामने आने का इंतज़ार है. 4 जून को जब ईवीएम रुपी पिटारा खुलेगा तो इस सस्पेंस से पर्दा उठ जाएगा. फिलहाल सभी ईवीएम वज्र गृह में सील हैं, जहां सुरक्षा का ऐसा घेरा है कि बिना इजाजत परिंदा भी पर नहीं मार सकता.

अब 4 जून को जो होना है, वो तो होकर रहेगा, पर तब तक यहाँ दावों-प्रतिदावों, जोड़–घटाव, गुना–भाग का दौर प्रारंभ हो गया है. मुख्य प्रत्याशी और उनके समर्थक अपनी–अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. सबों का अपना–अपना आंकडा और अपने–अपने तर्क हैं.

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सबसे पहले बात करते हैं गान्डेय की. गान्डेय विधानसभा उपचुनाव में कल्पना सोरेन की एंट्री ने इस सीट को हॉट सीट बना दिया. झामुमो ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बनाया और यहाँ अपनी पूरी ताकत झोंक दी. कल्पना सोरेन ने खुद आगे बढ़ कर प्रचार की कमान थामी और मतदान के दिन तक क्षेत्र में पूरी ताकत के साथ सक्रिय दिखीं. कल्पना सोरेन की सीधी टक्कर यहाँ से भाजपा के प्रत्याशी दिलीप वर्मा से है. पूरे प्रदेश की निगाहें इस सीट पर हैं और यहाँ के मतदाताओं ने भी काफी उत्साह दिखाया. भारी गर्मी को धता बताते हुए लोग अपने घरों से निकले और मतदान किया. यहाँ करीब 68 फीसदी मतदान हुआ है. खास तौर पर महिला वोटरों ने लोकतंत्र के इस महापर्व में खूब भागीदारी निभायी. प्रायः सभी बूथों पर पूरे दिन महिला वोटरों की लम्बी–लम्बी कतारें देखी गयीं. अब वोटिंग के इस पैटर्न को लेकर दोनों ही गठबन्धनों के अपने-अपने दावे हैं.

कोडरमा लोकसभा और गान्डेय विधानसभा में आखिर किस करवट बैठेगा ऊँट

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कल्पना सोरेन के समर्थकों की मानें तो वे वोट के अंतर का रिकॉर्ड बनाने जा रही हैं. ठीक ऐसा ही दावा दिलीप वर्मा के चाहने वालों का भी है. झामुमो को भरोसा है कि ट्राइबल और अल्पसंख्यकों ने कल्पना सोरेन को भर-भर कर वोट दिया है, वहीँ भाजपा को यहाँ भी मोदी के नाम का भरोसा है. उनका दावा है कि एक तरफ सभी वर्गों की महिलाओं ने जहां उन्हें वोट दिया है, वहीं कुछ अल्पसंख्यक उम्मीदवारों की वजह से अल्पसंख्यक वोट का बंटवारा हुआ है. हालांकि ये बंटवारा नहीं हो, इसके लिए झामुमो ने डॉ सरफ़राज़ अहमद, मंत्री हफिजुल हसन, कांग्रेस विधायक इरफ़ान अंसारी को यहाँ लगातार कैंप भी कराया. इतना ही नहीं, यादव वोटर्स को अपने पक्ष में करने के लिए तेजस्वी यादव की सभा भी करवाई.

इधर कोडरमा की बात करें तो यहाँ सीधी टक्कर भाजपा की अन्नपूर्णा देवी और भाकपा माले के विनोद सिंह के बीच है. झामुमो से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले प्रो जयप्रकाश वर्मा ने मामला त्रिकोणीय बनाने का भरसक प्रयास किया, पर जैसी सूचनाएं आ रही हैं, उनके अनुसार वे कुछ ख़ास नहीं कर पाए हैं. हालांकि विनोद सिंह के समर्थक चाह रहे हैं कि जयप्रकाश वर्मा अधिक से अधिक वोट लायें क्योंकि अन्नपूर्णा देवी को इससे सीधा नुकसान होना है. कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में भी महिलाओं ने बम्पर वोटिंग की है और पिछले चुनाव को आधार माना जाए तो महिलाओं का वोट मोदी के नाम ही रहा है और अन्नपूर्णा देवी के समर्थक अभी से ही फिर से भारी अंतर से जीत का रिकॉर्ड बनाने का दावा कर रहे हैं.

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चुनाव में बात कितनी भी चाहे मुद्दों की हो जाए पर ये कटु सत्य है कि भारत में चुनाव अब भी जातिगत और धर्म के आधार पर ही लड़े जाते हैं और इसमें भी जाति का मामला ज्यादा प्रभावी है. कोडरमा के चुनाव में भी दोनों ही गठबन्धनों ने अपने – अपने तरीके से जातिगत गोलबंदी का प्रयास किया. जयप्रकाश वर्मा भी अपनी जाति के वोटर्स के दम पर ही मैदान में उतरे थे, पर ये देखना दिलचस्प होगा कि ऐन वक्त पर क्या उनकी गोलबंदी नाकामयाब रही. यदि ऐसा हुआ तो फिर अन्नपूर्णा देवी को फायदा ज़रूर होगा. यहाँ चुनाव प्रचार के दरम्यान दोनों ही गठबन्धनों ने बड़ी–बड़ी सभाएं की. अन्नपूर्णा देवी के लिए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विशाल जनसभा की तो ठीक उसी दिन विनोद सिंह के लिए कल्पना सोरेन ने बड़ी सभा की. दोनों ही सभाओं में उमडी भीड़ को पैमाना माना जाए तो यहाँ टक्कर कांटे की मानी जा सकती है.

बहरहाल, दोनों ही गठबन्धनों ने चुनाव जीतने के लिए कई पैंतरे आजमाए हैं. अब जनता को किसका पैंतरा समझ में आया है और किसका नहीं, ये तो 4 जून को पता चलेगा. राजनीति का ऊँट आखिर किस करवट बैठेगा, ये जानने के लिए अब बस कुछ ही दिनों का इंतज़ार है, पर तब तक गली–मुहल्लों में, चौक–चौराहों पर किस्म–किस्म के, अलग-अलग प्रजातियों के राजनैतिक पंडित आपको अपना ज्ञान बघारते दिखेंगे, और आखिर ऐसा क्यों ना हो, यही तो इस लोकतंत्र की ख़ूबसूरती भी है. ये पब्लिक है, ये सब जानती है.

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