बंगाली समाज का ‘सिजानो’ यानी ‘बासीभात’ पर कुछ विशेष,,,,
रांची : सभी बंगाली घरों में सरस्वती पूजा के दूसरे दिन बासीभात का आयोजन किया जाता है। बासीभात का पर्व समाज के आस्था और अस्तित्व से जुड़ा है। इसे बनाने एवं इसके खाने में भी नियम निर्धारित होता है।
बाकी पर्व के तरह ही सिजानो पर्व में भी एक दिन पहले नहा धोकर बार किया जाता है यानी नहा धोकर शुद्ध होकर उस दिन दही चूड़ा और निरामिष भोजन खाने का रिवाज है और शाम को चावल का गुड़ी से बना छिलका पीठा बनाया जाता है। इस दिन बहुतों के घर में उंधी पीठा भी बनाया जाता है।
दूसरे दिन यानी सरस्वती पूजा के दिन नहा धोकर पूजा पाठ की तैयारी की जाती है। पूजा में तरह-तरह का फल मिष्ठान भोग और आठकलाय भी मां को अर्पण किया जाता है। जहां पर मां को विराजमान करते हैं वहां पर चावल के गुड़ी से अल्पना आंका जाता है। घर के सभी लोग मां सरस्वती की आराधना करते हैं। पूजा होने के बाद प्रसाद वितरण कर उसके बाद, पवित्रता के साथ भात (चावल) तथा नौ प्रकार की सब्जी पकवान बनाया जाता है। इस दिन मछली बनाने का भी विशेष प्रथा है। जब सारा पकवान बन जाता है उसके बाद शाम के समय सील लोढ़ा (শিল নোড়া) षष्टी मां की पूजा किया जाता है। मां षष्टी को नया साड़ी भी उढ़ाया जाता है। घर में जितनी भी पकवान बनाए जाते हैं सभी को मां के सामने अर्पण किया जाता है।
उसके बाद पूरा परिवार इस भोजन को ग्रहण करता है। इस पर्व में सिजानो खाने और खिलाने की भी परंपरा है। ज्यादातर बंगाली घरों में इस दिन चूल्हा तक नहीं जलता, यहां तक की सिलबट्टा पर भी कोई चीज पीसी नहीं जा सकती।
क्योंकि इस दिन विधि विधान के साथ घरों में सीलबट्टा और चूल्हे की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि एक दिन रसोई और चूल्हा को भी विश्राम दिया जाता है।
तीसरे दिन यानी सरस्वती पूजा के बाद का दिन बासी भात खाने का दिन है। बासी भात खाने के लिए अगल-बगल के लोगों को भी आमंत्रित किया जाता है।
साभार …..
रीना मंडल, रांची