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इनसाइड स्टोरी – आखिर क्यों नहीं हुई गिरिडीह के चर्चित ज़मीन घोटाले की निगरानी जांच

करीब 1500 एकड़ का घोटाला, उपायुक्त ने की थी अनुशंसा, मुख्यमंत्री ने दिया था आदेश, पर ठंढे बस्ते में चला गया आदेश

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गिरीडीह : ज़मीन की हेरा – फेरी को लेकर इन दिनों झारखण्ड की राजनीति गरमाई हुई है। ईडी ने रांची के साढ़े 8 एकड़ जमीन की जांच करके कई अफसरों, दलालों औऱ यहां तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री तक को गिरफ्तार कर लिया है। झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन दिनों ईडी की गिरफ्त में हैं। प्रदेश को चम्पई सोरेन के रूप में नया मुख्यमंत्री मिल गया है और झामुमो, कांग्रेस और माले के लोग केंद्र सरकार पर हमलावर हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि पिछले कुछ दिनों से लगातार समाचारों की सुर्ख़ियों में जो बातें रही हैं, उन्हें ही हम आपको फिर से क्यों बता रहे हैं। दरअसल अपने पाठकों को हम कुछ याद दिलाना चाहते हैं। हम आपको याद दिलाना चाहते हैं झारखंड के अलग-अलग जिलों में हुए हजारों एकड़ के उन जमीन घोटालों की, जो तब तो सुर्ख़ियों में थे ही, आज भी उतनी ही चर्चा में हैं। जी हां आपने बिल्कुल सही सुना, हजारों एकड़ जमीन का घोटाला। इन घोटालों में सबसे अहम है गिरिडीह का 1500 एकड़ का जमीन घोटाला। इस घोटाले की याद दिलाने से पहले एक सवाल – क्या इतने बड़े घोटाले की जांच ईडी करेगा?

झारखंड अलग राज्य बनने के बाद प्रदेश में जमीन की कीमतों में भारी उछाल आया। राजधानी रांची से लेकर देवघर, गिरिडीह, धनबाद, चाईबासा, हजारीबाग, सहित अन्य जिलों में बड़े पैमानों पर जमीन का घोटाला हुआ। राज्य भर में साल 2003 से लेकर 2009 के बीच सबसे ज्यादा जमीन की हेराफेरी हुई। इस दौरान बड़ी बड़ी कंपनियों के दलालों की आवाजाही गिरिडीह जिले में बढ़ गयी। क्योंकि गिरिडीह सहित झारखण्ड में कोयला भरपूर मात्रा में उपलब्ध है, इसलिये कंपनियों को यहां कोल प्लांट स्थापित करना था। लेकिन इसके लिये उन्हें नियमों के तहत वन विभाग के जरिये दोगुनी जमीन सरकार को सौंपनी थी। साथ ही कंपनियों की जिम्मेदारी थी कि इस जमीन पर वह पेड़ लगाकर वन विभाग के हवाले करे और उसकी रिपोर्ट वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ सरकार को सौंपे। तभी कंपनियों का कोल ब्लॉक आवंटन वैध माना जायेगा। लेकिन जमीन का नेचर गैर मजरूआ या फॉरेस्ट लैंड होने के कारण वह उसपर कब्जा नहीं जमा सकते थे।

इनसाइड स्टोरी - आखिर क्यों नहीं हुई गिरिडीह के चर्चित ज़मीन घोटाले की निगरानी जांच

यहीं पर जमीन माफियाओं का रोल आता है। जमीन माफियाओं ने फर्जी दस्तावेज तैयार किया और ग्रामीणों से जमीन को कौड़ियों के भाव में खरीद लिया। प्रति एकड़ जमीन पर ग्रामीणों को केवल 25 से 40 हजार रुपये दिये गये। सूत्रों की मानें तो प्रति एकड़ करीब 20 हजार रुपये अंचल में खर्च किये गये। इसके लिये जमीन माफियाओं ने राजस्व कर्मचारी और अंचल अधिकारी यानि CO की मिलीभगत से गैर मजरूआ जमीन और फारेस्ट लैंड  की फर्जी जमाबंदी करायी। यानि जमीन का मालिक कौन है, कितनी जमीन है, किस तरह की जमीन है— इन सब में छेड़छाड़ किया गया। इसके बाद जमीन माफियाओं ने जिंदल, रुंगटा, अभिजीत ग्रुप सहित अन्य बड़ी कंपनियों के पास इन जमीनों को बेच डाला। और इससे मोटी कमाई की। फर्जी कागजात, फर्जी जमाबंदी, फर्जी रैयत के सहारे दलालों ने जमकर खेल किया। कहीं रसीद और डीड में 10 एकड़ को 110 एकड़ बनाकर कंपनियों के पास बेच दी गयी, तो वहीं बिरनी सहित कई अंचलों में ग्रामीणों के घर और खेत तक को भी कंपनियों के नाम पर रजिस्ट्री कर दिया गया, जिन पर न तो कंपनी कभी कब्जा जमा सकी, न ही वन विभाग कब्जा कर पाया। ये खेल मुख्य रुप से गिरिडीह के देवरी, गांडेय, बिरनी, तिसरी और बेंगाबाद अंचल में हुआ। बताया जाता है कि ये 1500 एकड़ जमीन का घोटाला है, लेकिन कई लोगों का अनुमान है कि ये घोटाला 8000 एकड़ से भी ज्यादा का है।

इस मामले में मई 2012 में प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री  ने गिरिडीह के 8 अंचलों में गैर मजरूआ खास, जंगल आदि प्रकृति के करोड़ों की लागत की 1500 एकड़ जमीन घोटाले की जांच निगरानी विभाग को सौंपी। ये एक्शन तब लिया गया, जब साल 2011 में गिरिडीह की तत्कालीन डीसी वंदना दादेल ने गिरिडीह के कुल 13 अंचलों में से 9 अंचलों में अंचल अधिकारी और अंचल कर्मियों के सहयोग से जमीन माफियाओं द्वारा की गयी जमीन घोटाले की रिपोर्ट सरकार को भेजी। इसके साथ ही राज्य सरकार से इस जमीन घोटाले की जांच निगरानी विभाग से कराने की अनुशंसा की थी। इस रिपोर्ट पर मुहर लगाते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने निगरानी जांच का आदेश भी दिया था। कहा जा रहा था कि जमीन से संबंधित घोटालों से जुड़े कुल 53 मामलों की जांच निगरानी विभाग ही करेगा। बताया जा रहा था कि अगर इस घोटाले की जांच हुई, तो कई अंचल अधिकारी, अंचल कर्मी, राजस्व कर्मचारी, उद्योगपति, जमीन माफिया सभी इसमें फंस सकते हैं। मगर हैरानी की बात तो ये है कि मुख्यमंत्री स्तर से निगरानी जांच के आदेश के बावजूद ये जांच नहीं हुई। आखिर किसके दबाव में आकर निगरानी जांच रुक गयी? हालांकि इस मामले में बलबीर तुरी नाम के एक ग्रामीण ने गिरिडीह न्यायालय में कुल 17 लोगों के खिलाफ परिवाद दायर किया था और न्यायालय के आदेश से देवरी थाना में काण्ड संख्या 59/2009 दर्ज कर कुछ कार्रवाई भी हुई और देवरी के तत्कालीन सीओ सहित एकाध गिरफ्तारियां भी हुई। ये मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है और इस पर हमारी कोई टिप्पणी भी नहीं है।

पर सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न ये है कि  इतने बड़े घोटाले में निगरानी जांच का आदेश होने के बावजूद उसे ठंढे बस्ते में कैसे डाल दिया गया? क्या यह संभव नहीं कि इस घोटाले में जमीन माफियाओं से लेकर अफसरों, कर्मचारियों, नेताओं और उद्योगपतियों तक की भागीदारी होने की पूरी संभावना थी? क्या ईडी को राज्य का इतना बड़ा जमीन घोटाला दिखायी देगा? महाभारत काल में तो धर्मराज युधिष्ठिर थे और उन्होंने यक्ष प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाईयों की जान बचाई थी, कलियुग के इस काल में क्या कोई युधिष्ठिर आगे आकर इन यक्ष प्रश्नों का उत्तर देकर गरीब – गुरबों, शोषितों की जान बचाएगा?

 

–  आलोक रंजन

 

क्रमश: ……………

अगले अंक में पढ़िए आखिर कौन – कौन थे आरोपी, पुलिस ने अनुसन्धान के क्रम में किसे दी क्लीन चिट

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