Nav Bihan
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झामुमो ने की दिशोम गुरू शिबू सोरेन को भारत रत्न देने की मांग, महाजनी प्रथा, अशिक्षा, हडिया दारू के खिलाफ लडी थी लड़ाई

नेता ही नहीं समाज सुधारक भी थे दिशोम गुरु शिबू सोरेन: कृष्ण मुरारी शर्मा

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गिरिडीह। झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिला प्रवक्ता कृष्ण मुरारी शर्मा ने दिशोम गुरू शिबू सोरेन को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन भारत रत्न के हकदार हैं जो उन्हें जीवनकाल में ही मिल जाना चाहिए था। शिबू सोरेन ने हमेशा निचले पायदान पर खड़े लोगों के हक-अधिकार की लड़ाई लड़ी। ये वो दौर था ज़ब महाजनी प्रथा से गरीब लोग परेशान थे। गुरूजी ने इसके खिलाफ जंग छेड़ी और गरीबों को महाजनों के आंतक से मुक्ति दिलाई थी।

उन्होंने कहा कि जिस दौर में शिबू सोरेन ने गरीबों-मजलूमों की आवाज़ बुलंद की, उस वक्त महाजन व जमींदार लोग चंद पैसों के एवज में गरीब किसानों की जमीनें रजिस्ट्री ऑफिस में कठकेवाला करवा लेते थे। कठकेवाला में एक लिखित शर्त डलवा दी जाती थी कि निर्धारित दिनों में महाजन से लिया हुआ पैसा वापस कर देंगे नहीं तो वो जमीन महाजन की हो जाएगी। गरीब किसान समय पर पैसा वापस नहीं कर पाते थे और वो जमीन महाजन ले लेता था। इसके लिए दिशोम गुरूजी ने धनकटनी अभियान चलाया और जिन ज़मीनों का कठकेवाला था और जिस पर महाजन लोग धान रोपते थे, फसल पकने के बाद उन्होंने धनकटनी अभियान शुरू करवाया। यानि, जिसका खेत, उसकी फसल।

 

श्री शर्मा ने कहा कि अशिक्षा के खिलाफ भी गुरूजी ने लड़ाई लड़ी। गांव के गरीबों को, डिबिया जलाकर पढने वालों के बीच गुरूजी ने लालटेन बांटा और कहा था कि पढना जरूरी है। वहीं गुरूजी ने नशा के खिलाफ भी अभियान चलाया और हडिया दारू नहीं पीने को लेकर लोगों को, विशेष कर आदिवासी समाज को जागरूक किया।

उन्होंने कहा कि गुरूजी ने केवल आदिवासी ही नहीं, बल्कि गरीब शोषित, पीड़ित, दलित, पिछडों, अल्पसंख्यकों के भी हक अधिकार की लड़ाई लड़ी। उन्होंने सामाजिक न्याय की लड़ाई 70 के दशक से ही लडकर लोगों को हक अधिकार दिलाने का कार्य किया। झारखंड अलग राज्य निर्माण की लड़ाई लड़ी, अंततः 2000 ई में झारखंड का गठन हुआ और उनकी लड़ाई को मुकाम मिला। वे 8 बार लोकसभा सदस्य, 3 बार राज्यसभा सदस्य और 3 बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे।

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