Nav Bihan
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एक ऐसा मंदिर, जहां भगवान की तरह पूजे जाते हैं हाथी, मन्नतें पूरी करते हैं बाबा हाथीखेदा ठाकुर

महिलाओं को है यहाँ का प्रसाद खाने की मनाही, वर्षों से चली आ रही है परम्परा

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अजूबा है, पर सच है

 

राँची : हमारे देश की संस्कृति रंग-बिरंगी विविधताओं से भरी है. भारतवर्ष एक ऐसा देश है, जहां देवी-देवताओं के लाखों मंदिर हैं, जिनकी अपनी-अपनी आस्था है, धार्मिक मान्यताएं हैं और अपनी-अपनी पूजन पद्धतियाँ भी हैं.

विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिरों के बारे में तो आपने सुना होगा, पढ़ा होगा और कई मंदिरों के दर्शन भी किये होंगे. पर आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अजूबा तो है, पर सच है. ये है देश की लौहनगरी जमशेदपुर का हाथीखेदा मंदिर. जमशेदपुर शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर इस मंदिर की अपनी अद्भुत कहानी है. इस मंदिर में किसी देवी देवता की नहीं, बल्कि हाथी की पूजा की जाती है. जी हाँ, बिलकुल ठीक पढ़ा आपने, इस मंदिर में देवी देवता के रूप में हाथी की पूजा की जाती है.

प्रकृति की गोद में बसे जमशेदपुर के पटमदा के बोड़ाम प्रखंड में स्थित ये मंदिर बाबा हाथी खेदा ठाकुर का मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. एक तो प्राकृतिक सौन्दर्य और उस पर मंदिर की बेहतरीन स्थापत्य कला, इसे काफी खूबसूरत और आकर्षक बनाती है. इसके आसपास सुंदर पहाड़ और घने जंगल हैं, जिसकी वजह से इसकी सुंदरता और बढ़ जाती है. इसको देखने और बाबा हाथीखेदा ठाकुर का पूजन-दर्शन करने के लिए रोजाना हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं और पूजा पाठ करने के बाद प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाते हैं.

एक ऐसा मंदिर, जहां भगवान की तरह पूजे जाते हैं हाथी, मन्नतें पूरी करते हैं बाबा हाथीखेदा ठाकुर

जैसा कि हमने पहले भी अपने पाठकों को बताया कि इस मंदिर की सबसे खास और अलग बात यह है कि हाथीखेदा बाबा के मंदिर में किसी देवी-देवता की पूजा नहीं की जाती है, बल्कि यहां हाथी की पूजा की जाती है. जिसकी वजह से यह काफी प्रसिद्ध भी है.

इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां कोई भी मन्नत मांगी जाए, बाबा हाथीखेदा ठाकुर उसे जरूर पूरी करते हैं. यहां मन्नतें मांगने के लिए लोग मंदिर परिसर के पेड़ पर चुनरी के साथ नारियल बांधते हैं. मन्नत पूरी हो जाने पर यहां भेड़ की बलि चढ़ाने की परंपरा भी काफी पुरानी है. भेड़ की बलि चढाने के बाद उसका एक हिस्सा मंदिर में ही चढ़ा दिया जाता है और बाकी बचे हिस्से को यहीं पका कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. यहां की और एक सबसे खास बात यह है कि यहां का प्रसाद सिर्फ पुरुष ही ग्रहण करते हैं, महिलाएं यहां के प्रसाद को नहीं खा सकती हैं. इसके साथ ही यहां के प्रसाद को घर ले जाने की भी मनाही है. इस मंदिर के आसपास बसे लोगों के अनुसार उनके पूर्वजों ने वर्षों पहले से ही नियम बना रखा है कि यहां के प्रसाद को महिलाएं नहीं खाएंगी. पूर्वजों के बनाए नियम का अब भी पालन किया जा रहा है.

मंदिर के अंदर की बात की जाए, तो पूरे मंदिर परिसर में हाथियों की बहुत सारी मूर्तियां बनी हुई हैं. पूरा मंदिर परिसर घंटी, चुनरी और नारियल से पटा हुआ काफी खूबसूरत दीखता है.

झारखंड के साथ-साथ पूरे देश से इस मंदिर में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं. सोशल मीडिया के इस दौर में मंदिर की ख्याति काफी दूर-दूर तक फ़ैल गई है. देश-विदेश से लोग यहाँ मन्नतें मांगने और साथ ही धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी आते हैं. ख़ास तौर पर सर्दियों के मौसम में यहाँ लोगों का भारी जमावड़ा होता है. लोग पूजा-पाठ के साथ प्रकृति की गोद में पिकनिक का आनंद भी लेते हैं.

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