सरकारी नौकरी का झांसा देकर 55 लाख की ठगी, 31 लोग शिकार
शिक्षा विभाग के लोग भी इस ठगी गैंग के सदस्य, जांच में जुटी पुलिस
गिरिडीह : नौकरी की चाह में लोग क्या – क्या पापड़ नहीं बेलते, कई दुश्वारियों का सामना भी करते हैं. इसी एक अदद नौकरी की तमन्ना ने कई लोगों को ठगी का शिकार बनाया है. ये मामला गिरिडीह का है, जहां शिक्षा विभाग में नौकरी दिलाने के नाम पर 31 लोगों से 55 लाख रुपये की ठगी का मामला सामने आया है. ठगी की इस घटना को अंजाम एक संगठित गिरोह ने दिया है. इस गिरोह में शिक्षा विभाग से जुड़े कई लोग शामिल हैं.
मामला प्रकाश में आने के बाद इस मामले में आईसीटी ट्रेनर को गिरफ्तार कर लिया गया है. गिरफ्तार ट्रेनर लोगों से पैसे ऐंठकर रांची भेजता था. गिरफ्तार ट्रेनर मुफ्फसिल थाना क्षेत्र के अकदोनी कला का रहने वाला मनीष कुमार करण है. मनीष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है, जबकि बाकी लोगों की गिरफ़्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है.
पुलिस की गिरफ्त में आरोपी मनीष कुमार करण
मामला सामने तब आया जब मुफस्सिल थाना क्षेत्र के गादी श्रीरामपुर निवासी पवन कुमार ने पुलिस से पूरे मामले की शिकायत की. उसने बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम के जरिए उसकी दोस्ती मनीष कुमार करण से हुई. कुछ दिनों की दोस्ती के बाद मनीष ने एक दिन उसे अचानक कहा कि झारखंड एजुकेशन प्रोजेक्ट काउंसिल में ई-कल्याण और डाटा मैनेजमेंट ऑपरेटर का काम आया है और वह अपने जरिये उसे सरकारी नौकरी दिला सकता है. उसने बताया कि इस काम के लिए उसकी सेटिंग ऊपर तक है, शर्त सिर्फ ये है कि इसके लिए एक व्यक्ति को पांच लाख रुपये देने पडेंगे. एफआईआर में पवन ने लिखा है कि वह मनीष की बातों में आ गया और उसे पहली किश्त के रूप में ढाई लाख रुपये दे दिए. इतना ही नहीं, उसने अपने दो अन्य दोस्तों पुरुषोत्तम कुमार पटवा और कैलाश जायसवाल से भी पैसे दिलवाए. रुपये लेने के कुछ दिन बाद मनीष ने पवन के व्हाट्सएप पर पत्र भेजकर कहा कि 12 अप्रैल तक कागजातों का सत्यापन हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जब उन लोगों ने दबाव बनाय तो फिर मनीष ने कहा कि पूरी सेटिंग हो गयी है, अब 21 अप्रैल को सीधा इंटरव्यू होगा और उसके बाद पोस्टिंग दे दी जायेगी. पर इंटरव्यू भी नहीं हुआ, अलबत्ता उन्हें मेरिट लिस्ट जरूर दे दी गई.
मेरिट लिस्ट देने के साथ ही उसे कहा गया कि 3 मई तक डीसी कार्यालय, गिरिडीह में उन सबों की जोइनिंग होगी. 3 मई को जब वे डीसी ऑफिस पहुंचे तो मनीष ने उन्हें वहाँ अविनाश नामक व्यक्ति से मिलवाया. अविनाश ने बात बदलते हुए कहा कि पहले बीआरसी में बायोमेट्रिक होगा और फिर आईडी कार्ड दिया जाएगा. इन बातों से पवन सहित अन्य सभी को शक हुआ तो उन्होंने पैसे वापस करने को कहा. दबाव बनाने पर मनीष ने अशोक पात्रा के नाम का एक चेक दिया और कहा कि अगर नौकरी नहीं लगी तो चेक भंजा कर पैसे वापस ले लेना. उनलोगों ने जब बैंक में चेक लगाया तो चेक बाउंस हो गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए एफआईआर के दूसरे दिन ही पुलिस ने मामले के मास्टरमाइंड मनीष को गिरफ्तार कर लिया.
गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने मनीष से पूछताछ की. पूछताछ में मनीष ने अपने आठ साथियों के नाम बताए. उसने बताया कि इस गिरोह में बिहार के अलावा रांची के लोग भी शामिल हैं. इतना ही नहीं, शिक्षा विभाग के लोग भी इसमें शामिल हैं. उसने यह भी बताया कि उसके द्वारा दिए गए नियुक्ति पत्र पर अधिकारी के हस्ताक्षर की कॉपी भी है. इतना ही नहीं, मनीष ने अब तक 31 लोगों से ठगी करने की बात स्वीकार की है.
इस बाबत पूछे जाने पर मुफ्फसिल थाना प्रभारी श्याम किशोर महतो ने बताया कि नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी करने के मामले में एक युवक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. गिरफ्तार युवक ने अपने आठ साथियों के नाम भी बताए हैं, जिसमें शिक्षा विभाग और श्रम विभाग के लोग भी शामिल हैं. इस पूरे प्रकरण में इनकी संलिप्तता की जांच भी चल रही है.
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