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आग बरसा रहे सूरज देवता, बढ़ी देसी फ्रिज की डिमांड

पानी ठंडा रखने के लिए मिट्टी से बने घड़े और सुराही की बिक्री तेज़

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नमन नवनीत

गिरिडीह : आधुनिकता के इस दौर में एक ओर जहाँ हरेक घर में पानी ठंडा रखने के लिए फ्रिज जैसे मशीनी उपकरणों ने अपना कब्ज़ा जमा रखा है, वहीँ दूसरी ओर शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक मिट्टी से निर्मित होने वाले सुराही, घड़ा आदि का क्रेज आज भी बरकरार है. कोविड के बाद ख़ास तौर पर सेहत के प्रति जागरूक हुए  लोग इन दिनों मिट्टी से बने बर्तनों की और अधिक आकर्षित हो रहे हैं और यही वज़ह है कि जब सूरज देवता आसमान से आग बरसा रहे हैं, शरीर को झुलसा देने वाली गर्म हवा चल रही है, ऐसे में ठंढे पानी का सेवन अमृत समान है और ये ठंढा पानी यदि मिट्टी के घड़े या सुराही का हो तो फिर क्या कहना. यही वज़ह है की इन दिनों घड़े और सुराही की बिक्री काफी बढ़ गई है और जैसे-जैसे मौसम का पारा तेज़ हो रहा है, वैसे-वैसे भी इनकी कीमत भी तेज़ हो रही है. कई लोग इसकी बिक्री करके अपने परिवार का भरण – पोषण कर रहे हैं.

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क्यों ठंडा रहता है मिट्टी के मटके का पानी ?

जब मशीनी उपकरण नहीं हुआ करते थे तो लोग ठंडा पानी पीने के लिए मिट्टी से निर्मित उपकरण का ही इस्तेमाल किया करते थे. कई लोग आज भी ठंडा पानी पीने के लिए मिट्टी से निर्मित घड़ा या सुराही का ही उपयोग करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर मिट्टी के घड़े या सुराही का पानी कैसे ठंडा रहता है.

आग बरसा रहे सूरज देवता, बढ़ी देसी फ्रिज की डिमांड

दरअसल मिट्टी से निर्मित उपकरण घड़ा या सुराही के सतह पर छिद्र अतिसूक्ष्म होते हैं. इन छिद्रों से निकले पानी का वाष्पोत्सर्जन होता रहता है और जिस सतह पर वाष्पोत्सर्जन होता है वह सतह ठंडी रहती है. इसे उदाहरण से समझ सकते हैं कि स्प्रिट आदि के हाथ पर लगने से ठंडक महसूस होती है. वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में पानी की वाष्प बनती है और यह क्रिया हर तापमान पर होती रहती है. वाष्पोत्सर्जन कि क्रिया में बुलबुले नहीं बनते हैं और वायु की गति वाष्पोत्सर्जन की दर को तेज कर देती है. इससे साफ है कि जब घड़े या सुराही की सतह पर वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया चलती रहती है जिससे उसकी दीवारें ठंडी रहती हैं और इसी के चलते मटके या सुराही का पानी हमेशा ठंडा रहता है.

स्वास्थ्य के लिए भी है फायदेमंद

मटका या सुराही पर्यावरण के लिए हितकारी होने के साथ – साथ स्वास्थ्य के नजरिये से भी फायदेमंद है. इसमें रखा पानी पीने से गला ख़राब होने का डर कम होता है क्योंकि इसके पानी का तापमान इंसान के शारीरिक तापमान के बराबर होता है. इसलिए कई गांव-घर या ग्रामीण इलाके के लोग आज भी घड़ा या फिर सुराही का ही पानी पीते हैं. अब तो शहरों में भी इन पारंपरिक चीजों की मांग बढ़ी है और लोग एक बार फिर से इनका इस्तेमाल करने लगे हैं.

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