झारखंड में RTI पोर्टल की हकीकत
37 लाख खर्च, फिर भी RTI पोर्टल पर सिर्फ 37 विभाग, झारखंड में ई-गवर्नेंस की सच्चाई उजागर


गिरिडीह : झारखंड सरकार ने पारदर्शिता के दावों के साथ RTI ऑनलाइन पोर्टल पर 37 लाख रुपये से ज्यादा खर्च किए, लेकिन पांच साल बाद भी सिर्फ 37 विभाग ही इससे जुड़ सके। सूचना का अधिकार (RTI) के तहत मिली जानकारी ने ई-गवर्नेंस की जमीनी हकीकत को उजागर कर दिया है।

सूचना एवं ई-गवर्नेंस विभाग ने सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुनील खंडेलवाल के RTI आवेदन के जवाब में खुलासा किया कि पोर्टल के विकास पर अब तक ₹37,14,600 खर्च हो चुके हैं। यह राशि जेएपी-आईटी द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर है। लेकिन इतने बड़े खर्च के बावजूद, पोर्टल का दायरा बेहद सीमित है। केवल 37 लोक प्राधिकरण ही इस डिजिटल मंच से जुड़े हैं, जबकि बाकी विभाग अब भी इससे बाहर हैं।
प्रचार-प्रसार में कमी
पोर्टल के प्रभावी संचालन और प्रचार-प्रसार के लिए कई बार संबंधित विभागों को पत्र और रिमाइंडर भेजे गए, लेकिन जवाबों का अभाव रहा। दस्तावेजों के अनुसार, विभागों से इस संबंध में जारी आदेशों की कॉपी मांगी गई, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं दी गई।
बजट का हिसाब अधूरा
RTI में पोर्टल के लिए प्रस्तावित बजट, स्वीकृति और खर्च का ब्योरा मांगा गया था, लेकिन केवल आंशिक जानकारी ही साझा की गई। यह अपारदर्शिता सरकार के डिजिटल गवर्नेंस के दावों पर सवाल उठाती है।
जब करोड़ों के बजट और डिजिटल इंडिया के नारों के बीच RTI पोर्टल जैसी महत्वपूर्ण पहल अधर में ललटकी हो, तो सरकार की मंशा और कार्यप्रणाली पर सवाल उठना स्वाभाविक है। सिर्फ 37 विभागों का जुड़ना इस बात का सबूत है कि ई-गवर्नेंस की राह में अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
कुछ प्रमुख बातें, जिन्हें जानना है ज़रूरी
खर्च: ₹37,14,600
जुड़े विभाग: केवल 37
मुद्दा: प्रचार, संचालन और विभागों की भागीदारी में कमी
सवाल: क्या डिजिटल पारदर्शिता सिर्फ कागजी दावा है?
झारखंड में RTI पोर्टल की यह स्थिति न केवल सरकारी योजनाओं की धीमी रफ्तार को दर्शाती है, बल्कि जनता के सूचना के अधिकार को प्रभावी ढंग से लागू करने में भी कमियों को उजागर करती है। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि पारदर्शिता के दावे हकीकत में बदल सकें।

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