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अभिव्यक्ति फाउंडेशन की अनोखी पहल, देसी खाद्य सामग्रियों की लगाई प्रदर्शनी

खाने की देशज सामग्रियों के संरक्षण-संवर्धन का हो रहा प्रयास

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गिरिडीह : स्वयंसेवी संस्था अभिव्यक्ति फाउंडेशन ने एक आदिवासी गांव में देशज खाद्य व्यवस्था शीर्षक से एक कार्यक्रम का आयोजन किया. धरमपुर नामक गांव में आयोजित इस समारोह में स्थानीय निवासियों ने अपनी देशी खाद्य सामग्रियों को प्रदर्शित करते हुए देसी रेसिपी प्रतियोगिता में भी भाग लिया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि क़ृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. रंजन ओझा थे. उन्होंने गांव वालों को उन फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जो हाल के दिनों में महत्व खो चुकी हैं, जैसे कोदो, सरगुजिया और मडुआ आदि. इसी कार्यक्रम में गांव के मुखिया ने इन पारंपरिक फसलों के महत्व पर जोर दिया।

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दरअसल इन दिनों जर्मनी की संस्था वेल्ट हंगर हिल्फ़े के सहयोग से अभिव्यक्ति फाउंडेशन के द्वारा “ग्रीन इवोल्यूशन: पाथवेज़ टू फूड ट्रांसफॉर्मेशन” नामक एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सदियों से उगाई जा रही और खाने में इस्तेमाल की जा रहीं उन फसलों का पुनर्नस्थापन और संरक्षण है, जो पोषक तत्वों से भरपूर हैं.

कार्यक्रम में बोलते हुए अभिव्यक्ति फाउंडेशन के सचिव कृष्णकांत ने पारंपरिक किस्मों से पश्चिमी खाद्य आदतों की ओर बढ़ने के चिंताजनक रुझान को उजागर किया, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। उन्होंने बेहतर स्वास्थ्य और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए स्थानीय किस्मों को अपनाने के महत्व पर जोर दिया।

डॉ. रंजन ओझा ने अभिव्यक्ति फाउंडेशन की प्रशंसा की, जिन्होंने इस तरह के सामुदायिक आधारित कार्यक्रम का आयोजन करने की पहल की, जो न केवल पारंपरिक खाद्य पदार्थों के महत्व को उजागर करता है, बल्कि समुदाय को भूली हुई रेसिपी के मूल्य के बारे में भी शिक्षित करता है।


कार्यक्रम में प्रवाह परियोजना के अतिथि मुनमुन डे को भी आमंत्रित किया गया, जिन्होंने प्रतिभागियों को अपने माता-पिता और दादा-दादी की पारंपरिक खाद्य सामग्रियों को अगली पीढ़ियों के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया। मुखिया महावीर मंडल ने उपस्थित लोगों को अपनी पारंपरिक संस्कृति को संरक्षित करने की आवश्यकता की याद दिलाया और उन फसलों का उल्लेख किया, जैसे मदुआ, गोंडली और सहजन, जो अब धीरे-धीरे दुर्लभ होती जा रही हैं।

यह कार्यक्रम न केवल देशी खाद्य पदार्थों का उत्सव था, बल्कि इसके माध्यम से समुदाय के सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव को भी मजबूत करने का प्रयास किया गया. कार्यक्रम को सफल बनाने में परियोजना समन्वयक अमित मिश्रा और उनकी टीम का सराहनीय योगदान रहा.

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