Nav Bihan
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ग्राम प्रधान से कैबिनेट मंत्री तक, रामदास सोरेन की जनसेवा यात्रा अब स्मृतियों में

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रांची/जमशेदपुर। झारखंड के राजनीतिक और सामाजिक धरातल पर एक मज़बूत पहचान रखने वाले रामदास सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। शिक्षा, जनसेवा और आदिवासी अधिकारों के पुरोधा, राज्य के स्कूली शिक्षा, साक्षरता एवं निबंधन मंत्री और झामुमो के वरिष्ठ नेता ने शुक्रवार को दिल्ली के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे बीते कई दिनों से जीवन रेखा (लाइफ सपोर्ट) पर थे। 2 अगस्त को अपने आवास के बाथरूम में हुई एक दुर्घटना के बाद उन्हें गंभीर हालत में एयरलिफ्ट कर दिल्ली ले जाया गया था।

जनता से जुड़ाव से रचा सशक्त राजनीतिक सफर

1 जनवरी 1963 को पूर्वी सिंहभूम जिले के घोराबांधा गांव में जन्मे रामदास सोरेन की राजनीति की शुरुआत ग्राम प्रधान के रूप में हुई थी। गांव-गांव पैदल चलकर लोगों से जुड़ाव और उनकी समस्याओं को समझने की उनकी शैली ने उन्हें जनता के बीच गहरी पैठ दिलाई। यही जुड़ाव आगे चलकर उन्हें राज्य की विधानसभा तक ले गया।

उन्होंने तीन बार घाटशिला से विधायक के रूप में जनता का प्रतिनिधित्व कियाकृ2009, 2019 और 2024 में। 2005 में जब उन्हें झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के कारण टिकट नहीं मिला, तब उन्होंने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा और 35,000 से अधिक वोट प्राप्त कर अपनी जनप्रियता का प्रमाण दिया।

शिक्षा के लिए समर्पित व्यक्तित्व

को-ऑपरेटिव कॉलेज, जमशेदपुर से स्नातक रहे सोरेन ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने खासकर आदिवासी अंचलों में स्कूलों की हालत सुधारने और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने पर बल दिया। मंत्री बनने के बाद भी उन्होंने कार्यालय की कुर्सी से बाहर निकलकर दूर-दराज के स्कूलों का दौरा किया, बच्चों और शिक्षकों से संवाद किया और नीतियों में सुधार की दिशा में पहल की।

एक नेता जो कभी हार नहीं मानता

2014 के विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद रामदास सोरेन ने क्षेत्र से अपना जुड़ाव नहीं तोड़ा। जनता के बीच उनकी लगातार मौजूदगी, कठिन समय में साथ खड़े रहने की उनकी आदत ने उन्हें दोबारा चुनाव जिताने में मदद की। 2019 और फिर 2024 में उन्होंने भारी बहुमत से जीत दर्ज की और 2024 में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद उनके पैतृक गांव में उत्सव का माहौल था।

एक अनचाहा अंत, एक अपूरणीय क्षति

2 अगस्त की सुबह हुए हादसे के बाद जब उनकी हालत नाजुक हुई, तो पूरा राज्य चिंतित हो उठा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर उन्हें तत्काल दिल्ली ले जाया गया, लेकिन कई दिनों की कोशिशों के बावजूद शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से राज्य ने एक सच्चा जननेता, शिक्षानिष्ठ सुधारक और आदिवासी समाज का मजबूत प्रतिनिधि खो दिया।

नेताओं और जनता की ओर से श्रद्धांजलि

राज्यपाल संतोष गंगावार, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, विधायक कल्पना मुर्मू सोरेन सहित अनेक नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया। झामुमो ने इसे पार्टी और झारखंड के लिए अपूरणीय क्षति बताया। आम जनता के बीच भी उनकी सादगी, सेवा भावना और समर्पण को लेकर भावुक माहौल है।

रामदास सोरेन अब भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी संघर्षगाथा, जनसेवा और शिक्षा सुधार की दृष्टि हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।

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