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आखिर क्यों मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार, क्या है पौराणिक मान्यता

क्यों जलाई जाति है आग, कौन थे दुल्ला भट्टी, क्या है उनकी कहानी

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गिरिडीह : मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है. खास तौर पर सिख समुदाय के लोग लोहड़ी बड़े ही धूम – धाम से मनाते हैं. हालांकि पंजाब और इसके आस – पास के इलाकों में सभी लोग लोहड़ी का त्यौहार मनाते हैं.

विविधताओं से भरे भारत देश में कई पर्व त्यौहार मनाये जाते हैं और इन सब के पीछे कोई ना कोई कहानी ज़रूर जुडी है. आखिर लोहड़ी के पीछे क्या मान्यता है और सिख समुदाय के लोग इतने उत्साह से लोहड़ी क्यों मनाते हैं, ये हम आपको इस आलेख के माध्यम से बताने का प्रयास करेंगे.

आखिर क्यों मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार, क्या है पौराणिक मान्यता
आखिर क्यों मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार, क्या है पौराणिक मान्यता

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह आग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। राजा दक्ष अपने दामाद भगवान् शंकर से वैर रखते थे और उन्हें पसंद नहीं करते थे. एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास गई और पूछा कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया। इस बात पर अहंकारी राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। इससे सती बहुत आहत हुईं, उनसे अपने पति का अपमान सहा नहीं गया और उन्होंने उसी यज्ञ की अग्नि में कूद कर खुद को भस्म कर लिया। सती की मृत्यु का समाचार सुन भगवान् शिव ने रौद्र रूप धारण कर वीरभद्र को उत्पन्न किया और यज्ञ का विध्वंस करा दिया। माना जाता है कि तब से ही माता सती की याद में लोहड़ी की आग जलाने की परंपरा है।

ये तो पौराणिक मान्यता की बात हुयी. दरअसल भारत एक कृषि प्रधान देश है और ये समय नयी फसल का होता है. यही वजह है कि इस वक्त नयी फसल के आगमन की ख़ुशी में देश के हरेक हिस्से में त्यौहार मनाये जाते हैं. कहीं सोहराय मनाया जाता है तो कहीं पोंगल और कहीं लोहड़ी. हर वर्ष पौष माह के अंतिम दिन उत्साह व उमंग के साथ लोहड़ी मनाया जाता है. इसी दिन से माघ मास की शुरुआत भी हो जाती है.

लोहड़ी पर सुनी जाति है दुल्ला-भट्टी की कहानी

क्यों जलाई जाति है आग, कौन थे दुल्ला भट्टी, क्या है उनकी कहानी
क्यों जलाई जाति है आग, कौन थे दुल्ला भट्टी, क्या है उनकी कहानी

 

लोहड़ी के पीछे एक कथा प्रचलित है. ये कथा दुल्ला भट्टी नाम के चरित्र की है, जिनका रोचक इतिहास इस पर्व के साथ जुड़ा है. ऐसा कहा जाता है कि पुराने समय में सुंदर एवं मुंदर नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं. उनके चाचा ने राज्य के शक्तिशाली सूबेदार का कृपापात्र बनने के लिए उन बच्चियों को उसको सौंप दिया था. उसी राज्य में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू था, जो अमीरों व घूसखोरों से धन लूटकर गरीबों की मदद किया करता था. जब उसको यह बात पता चली तो उसने दोनों लड़कियों को मुक्त करा कर दो अच्छे लड़के देखकर खुद ही पिता के रूप में उन दोनों का कन्यादान किया. इसके लिए उसने आसपास से लकड़ियाँ एकत्रित करके आग जलाई और शादी में फल व मीठे की जगह रेवड़ी और मक्के जैसी चीजों का ही इस्तेमाल किया गया. उसी समय से दुल्ला भट्टी की याद में यह त्योहार मनाया जाने लगा. ये नाम आज भी लोहड़ी के लोक गीतों में लिया जाता है और वो पंजाब में नायक की तरह याद किया जाता है.

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