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हुआ शपथ ग्रहण, अब मंत्रिमंडल गठन का चैलेंज, दो-चार दिनों में हो सकता है फैसला

मंत्रिमंडल में जगह पाने को कांग्रेस में घमासान, माले को लेकर सस्पेंस बरकरार

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आलोक रंजन

रांची : हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण के साथ ही झारखण्ड में नयी सरकार ने काम-काज संभाल लिया है, पर गुरुवार को चौथी बार मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन के सामने मंत्रिमंडल गठन की बड़ी चुनौती अब भी कायम है.  हालांकि हेमंत सोरेन ने कहा है कि दो-तीन दिनों के अंदर मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। कौन होगा मंत्रिमंडल में शामिल और किसका कटेगा पत्ता, ये यक्ष प्रश्न अभी भी कायम है. सूत्रों की मानें तो मंत्रिमंडल गठन को लेकर झामुमो में अधिक माथापच्ची नहीं है क्योंकि यहाँ अंतिम फैसला हेमंत सोरेन को ही करना है. दरअसल सबसे अधिक खींचतान व घमासान कांग्रेस में हैं. इसी घमासान की वजह से ही हेमंत सोरेन ने अकेले शपथ ली, वर्ना उसी दिन अन्य मंत्रियों का शपथ ग्रहण भी हो जाता.

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आखिर क्यों मचा है कांग्रेस में घमासान

कांग्रेस में कुछ नामों को लेकर तो सहमती है, पर कुछ को लेकर खींच-तान जारी है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस से डा. रामेश्वर उरांव और दीपिका पांडेय का नाम तो लगभग तय है, पर दो अन्य नामों पर मंथन चल रहा है. असली घमासान अल्पसंख्यक कोटे को लेकर है. आलमगीर आलम के जेल जाने के बाद डॉ इरफ़ान अंसारी को पिछली बार मंत्री बनया गया था. पर इस बार आलमगीर आलम की पत्नी निशात आलम चुनाव जीत कर आई हैं और उनकी दावेदारी मज़बूत है. आलमगीर आलम कांग्रेस आलाकमान के वफादार व मददगार भी रहे हैं, इसलिए उनकी पत्नी की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है. अपने बयानों को लेकर डॉ इरफ़ान अंसारी हमेशा विवादों में रहते हैं और सरकार को असहज कर देते हैं. बताया जा रहा है कि झामुमो और कांग्रेस का एक बड़ा खेमा इरफ़ान अंसारी का विरोध कर रहा है. निशत आलम व इरफान अंसारी के बीच कांग्रेस फंस गई है.

मंत्रिमंडल में ओबीसी चेहरे की बात करें तो प्रदीप यादव का नाम सबसे आगे चल रहा है. बनना गुप्ता चुनाव हार गए हैं, इसलिए अनुभवी व् सीनियर विधायकों की फेहरिस्त में शुमार प्रदीप यादव की दावेदारी मजबूत है. हालंकि बेरमो विधायक अनूप सिंह का नाम भी चर्चा में है.

मंत्रिमंडल में जगह पाने को कांग्रेस में घमासान, माले को लेकर सस्पेंस बरकरार
मंत्रिमंडल में जगह पाने को कांग्रेस में घमासान, माले को लेकर सस्पेंस बरकरार

 

आदिवासी कोटे की बात करें तो कांग्रेस में कई विधायकों के नाम की चर्चा है. आदिवासी कोटे से डॉ रामेश्वर उरांव का नाम करीब तय है, हालांकि बंधु तिर्की अपनी बेटी नेहा शिल्पी तिर्की के लिए लॉबिंग में लगे हए हैं, पर डा. उरांव एक अनुभवी और मंजे हुए नेता हैं, पांच साल से सरकार का अति मत्वपूर्ण वित्त विभाग संभाल रहे हैं,  इसलिए माना जा रहा है कि उनका नाम कटना संभव नहीं है.

राष्ट्रीय जनता दल से भी होगा एक मंत्री 

इस बार राष्ट्रीय जनता दल ने शानदार प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया है. ये तय है कि राजद कोटे से एक मंत्री बनेगा. राजद से हुसैनाबाद विधायक संजय सिंह यादव व गोड्डा से विधायक संजय यादव व देवघर विधायक सुरेश पासवान दावेदार हैं. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इन तीनों में सुरेश पासवान का पलड़ा भारी है क्योंकि वे राजद सुप्रीमो लालू यादव की पहली पसंद हैं. जातीय समीकरण के अनुसार भी सुरेश पासवान की दावेदारी मज़बूत है. अगले साल बिहार में विधानसभा का चुनाव है और देवघर का इलाका बिहारकी सीमा से लगा है. सुरेश पासवान दलित समाज से हैं, पर बिहार में पासवान जाति केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के साथ है. ऐसे में  पासवान जाति के वोटर्स को प्रभावित करने के लिए, उन्हें रिझाने के लिए लालू यादव सुरेश पासवान को मंत्री बनाने के पक्ष में हैं।

मंत्रिमंडल में झामुमो कोटे की बात करें तो यहाँ मंत्रियों का नाम हेमंत सोरेन को तय करना है. हालांकि यहां भी कई दावेदार हैं. पुराने चेहरों के अलावा इस बार कई नए दावेदार भी हैं. पलामू प्रमंडल में झामुमो कोटे से भवनाथपुर विधायक अनंत प्रताप देव के नाम की चर्चा जोरों पर है. अनंत प्रताप देव अच्छी छवि वाले एक सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं. ऊँची जाति से भी आते हैं, इसलिए उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने से कैबिनेट में उच्च जाति को प्रतिनिधित्व मिल सकेगा. चर्चा है कि विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र महतो इसबार मंत्री बनना चाहते हैं. गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू, मथुरा महतो, योगेन्द्र महतो, हेमलाल मुर्मू सहित कुछ और का नाम भी सुर्ख़ियों में चल रहा है. अब देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन किनका नाम तय करते हैं.

माले को लेकर असमंजस की स्थिति

भाकपा माले सरकार में शामिल होगा या पिछले बार की तरह बाहर ही रहेगा, पार्टी ने इस पर अब तक फैसला नहीं किया है. शुक्रवार को पार्टी की बैठक भी हुयी पर मामला पोलित ब्यूरो के हवाले कर दिया गया है. अब इस बात पर एक या दो दिसम्बर को निर्णय होगा. हालांकि दीपंकर भट्टाचार्य ने मीडिया से बात करते हुए इशारा कर दिया है कि उनके पास सिर्फ दो विधायक हैं और संख्याबल में कम होने की वज़ह से उनकी दावेदारी थोड़ी कमज़ोर है.

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