सुदूरवर्ती इलाकों में सरकारी विद्यालयों से गायब हो रहे हैं बच्चे, विभाग पर उठ रहा सवाल


गिरिडीह। एक ओर सरकार द्वारा रूआर और मध्याहन भोजन जैसे कई स्कीम बच्चांे को सरकारी विद्यालयों तक लाने के लिए चलाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जिले के सुदूरवर्ती प्रखंड तिसरी में शिक्षा व्यवस्था खाट पर नजर आ रही है। इसका असर यह है कि तिसरी के सुदूरवर्ती गांवों में बच्चे अब सरकारी विद्यालय भी नहीं जाना चाहते हैं और वह जाए भी तो क्यों जाए जब उन विद्यालयों के शिक्षक बच्चों को पढ़ाने लिखाने की जगह सिर्फ फॉर्मेलिटी पूरा कर समय से पूर्व विद्यालय बंद कर चले जाते है।
हम बात कर रहे हैं तिसरी प्रखंड स्थित कानीचियार गांव की जहां प्राथमिक विद्यालय संचालित हैं, लेकिन विद्यालय में न तो बच्चों की संख्या अधिक है और न ही विद्यालय का भवन की देख रेख अच्छे से होती है। वहीं विद्यालय के एक मात्र शिक्षक भी एक बजने के बाद विद्यालय से गायब हो जाते हैं।

इधर दूसरी ओर अगर बात करें उत्क्रमित मध्य विद्यालय पनियाय एवं प्राथमिक विद्यालय छत्रमार की तो इन दोनों विद्यालयों में भी बच्चों की संख्या कम है और मध्यान भोजन लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है। इतना ही नहीं इन विद्यालयों में बच्चों को मिलने वाली पुस्तकें भी कूड़े के ढेर में तब्दील होती जा रही है मगर इन किताबों को किसी ने बच्चों के बीच बांटने या विभाग को वापस करने की जहमत नहीं उठाई है। हैरत की बात तो यह है कि इन सभी विद्यालयों का निरीक्षण विभाग के बीआरपी एवं सीआरपी के द्वारा किया जाता है। बावजूद इसके इन विद्यालयों की यह स्थिति बनी हुई है। इससे साफ तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चों को सरकारी स्तर पर शिक्षा प्रदान करने के लिए विभाग के कर्मी और अधिकारी कितना प्रयासरत हैं।
इधर इन मामलों को लेकर जब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी तितु लाल मंडल से बात किया गया तो उन्होंने कहा कि ऐसे विद्यालय के शिक्षकों के खिलाफ जल्द ही कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह कार्रवाई होगी तो आखिर क्या? क्या सिर्फ इन शिक्षकों के विरुद्ध स्पष्टीकरण करने एवं इनके वेतनमान की रोकने से शिक्षा स्तर में सुधार लाया जा सकता है? खैर जो भी हो लेकिन विभाग को गरीब और आदिवासी बच्चों के शैक्षिक भविष्य को देखते हुए ठोस कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है।

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