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सदियों से अलिखित रहने के बावजूद काफी समृद्ध है खोरठा भाषा का शब्द-भंडार

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष

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महेन्द्र नाथ गोस्वामी '' सुधाकर "
महेन्द्र नाथ गोस्वामी ”सुधाकर “

 

झारखंड पृथक राज्य की लड़ाई झारखण्डियों के लिए न केवल उसके सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक चेतना की लड़ाई थी – वरन झारखंड के दो करोड़ झारखण्डियों के लिए उसकी कला, संस्कृति और भाषा की पुनर्पहचान, पुनर्स्थापना कर उसके संरक्षण , संवर्द्धन करने एवं उसके मान-सम्मान की लड़ाई भी थी – जिसमें झारखंड की अन्य भाषाओं के मध्य डेढ़ करोड़ से उपर- खोरठा भाषियों की भागीदारी थी !

वर्तमान में झारखंड के विकास की दिशा-दशा में झारखण्ड की नौ मान्यता प्राप्त प्रमुख भाषाओं के अन्तर्गत राज्य के सबसे बड़े भू-भाग (18 जिला ) में बोली जाने वाली भाषा-खोरठा की भूमिका प्रमुख है ! इसका क्षेत्र विस्तार- अत्यधिक व्यापक है! लगभग 32 हजार वर्ग किलोमीटर विस्तृत क्षेत्र – उत्तरी छोटानागपुर के धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, गिरिडीह, चतरा,कोडरमा, संथाल परगना, के दुमका, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज, तथा पलामू के आंशिक क्षेत्र में खोरठा बोली जाती है ! साथ ही यह भी कि-देश के अन्य राज्यों-बंगाल, असम,पंजाब, दिल्ली तथा विदेश- मारीशस मे भी खोरठाभाषी मौजूद हैं !

खोरठा का भाषिक स्वरूप

खोरठा एक जीवंत भाषा है ! इसकी अभिव्यंजना क्षमता काफी सशक्त है ! सदियों से अलिखित रहने के बावज़ूद भी इसका शब्दभंडार अत्यंत समृद्ध है ! वर्तमान में खोरठा भाषा का अपना भाषा-विज्ञान है ! स्वतंत्र व्याकरणीय अनुशासन है ! इसके भाषिक स्वरूप में भारोपीय ,आग्नेय,एवं द्रविड़ – तीन भाषा परिवारों के लक्षण विद्यमान हैं !इस भाषा की अभिव्यंजना क्षमता अद्वितीय है ! यह झारखण्डी संस्कृति का अभिन्न अंग है !

लोक साहित्य

खोरठा लोक साहित्य की विरासत काफी समृद्ध रही है ! इसके असंख्य लोकगीतों एवं लोककथाओं मे झारखण्डी संस्कृति की सोंधी महक और खाँटी झलक मिलती है ! महराई जैसी वृहद लोकगाथा इसकी गौरवशाली धरोहर है!

शिष्ट साहित्य

समृद्ध लोकसाहित्य की पृष्ठभूमि में आज खोरठा शिष्ट-साहित्य का सृजन , प्रकाशन निरंतर प्रगति पर है ! साहित्य की विभिन्न विधाओं में सैकड़ों पुस्तकें प्रकाश में आ चुकी हैं तथा उससे अधिक खोरठा साहित्य की पाण्डुलिपियाँ प्रकाशन की बाट जोह रही हैं ! खोरठा साहित्य आज झारखण्ड के महान सांस्कृतिक मूल्यों का सच्चा संवाहक बन चुका है !

देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान खोरठा अपने क्षेत्रों में जनजागरण का माध्यम रही है -जिसमें गुलामी से छूटने के लिए अनेक गीत गाये गए हैं ! झारखंड अलग राज्य के आंदोलन के दौरान खोरठा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है ! इसके साहित्यकारों एवं संस्कृतिकर्मियों ने झारखंड पृथक राज्य के आंदोलन में भावनात्मक पृष्ठभूमि तैयार करने का कार्य किया है -और वर्तमान में भी खोरठा भाषा-साहित्य झारखंड के नव-निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है !

खोरठा की दशा-दिशा

युगों से सरकारी उपेक्षा के बावजूद खोरठा के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सका – पर इसे अपने वास्तविक स्थान और मान – सम्मान के लिए वर्तमान में भी संघर्ष करना पड़ रहा है ! जबकि- सन् 1980 से ही इसकी पढ़ाई स्नातकोत्तर कक्षा से होते हुए निचली कक्षाओं- स्नातक , इन्टर , मैट्रिक , एवं आठवीं कक्षा में भी होने लगी है ! वर्तमान में खोरठा भाषा का अध्ययन-अध्यापन , पठन-पाठन राँची विश्वविद्यालय ,राँची / राधागोविन्द विश्वविद्यालय, रामगढ़/ विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग/ कोयलांचल विश्वविद्यालय , धनबाद में हो रहा है !

झारखंड अधिविध परिषद् ने अपने पाठ्यक्रम में खोरठा को अनिवार्य या वैकल्पिक विषय के रूप में पठन-पाठन का प्रावधान रखा है ! प्राथमिक कक्षाओं से पढ़ाए जाने का निर्णय लिया जा चुका है ! इन सबके अतिरिक्त खोरठा के लिए एक बड़ी उपलब्धि यह है कि-यह झारखंड लोक सेवा की प्रतियोगिता परीक्षा में एक विषय के रूप में शामिल है !

अब तक सैकड़ों से अधिक विद्यार्थी खोरठा में स्नातकोत्तर और डाक्टरेट कर चुके हैं , तथा प्रति वर्ष सैकड़ों से अधिक विद्यार्थी खोरठा विषय की परीक्षा इंटर-स्नातक स्तर पर देते आ रहे हैं ! जे0 पी0 एस0 सी0 की मुख्य परीक्षा मे खोरठा को एक मुख्य विषय के रूप में शामिल किया गया है ! इसके अतिरिक्त झारखण्ड की अन्य सेवा की प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी इसका स्थान है ! इस प्रकार खोरठा झारखंड की शैक्षणिक स्तर पर निरंतर प्रगतिशील होकर अब कैरियर के निर्माण में सहायक हो चुका है !

लक्ष्य

इन सबके बावजूद वर्तमान में भी पृथक झारखंड राज्य में खोरठा भाषा को जो सम्मान एवं अधिकार मिले हैं, वह अ-पर्याप्त ही हैं !

सामाजिक क्रांति का अर्थ यह नहीं होता कि केवल सड़क, पानी, बिजली आदि सुविधाएं मुहैया की जाए! गरीबी दूर की जाए ! खेतों में हरियाली हो ! गरीब-बीमारों को आर्थिक सहायता मिले ! ये सब तो सभी राज्य की सरकारें करती ही हैं ! सामाजिक क्रांति में कुछ बुनियादी परिवर्तन की बातें आवश्यक होती हैं – भाषा में , संस्कृति में , समाज की बनावट में , स्वायत्तता में ! इनमें पुरखों की धरोहर तथा उनकी अस्मिता की सुरक्षा भी आवश्यक है ! क्योंकि सभ्यता यदि आचार है तो – भाषा और संस्कृति अपने सूक्ष्म और गहनतम रूप में विचार ही है ! और बिना विचार के न समाज का टिकना सम्भव है और न ही भाषा-संस्कृति का ,न ही उसकी कला-संस्कृति का !

इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आधार खोरठा भाषा आठवीं अनुसूची में स्थान पाने की सभी अहर्ताएं पूरी करती है ! यदि यह कहा जाए कि यह झारखण्ड की आत्मा है , तो अतिशयोक्ति नहीं होगी !

वर्तमान

इतिहास साक्षी है कि-जहाँ की मातृभाषा का विकास नहीं हुआ, वह क्षेत्र विपुल संसाधनों के बावजूद भी पिछड़ा व अविकसित ही रहा तथा जिसने अपनी मातृभाषा को संरक्षित-संवर्धित कर मान-सम्मान दिया , वह विकास की राह पर  उत्तरोत्तर बढ़ रहा है ! क्योंकि किसी भी क्षेत्र की मातृभाषा ही उस क्षेत्र के विकास के लिए प्रथम सोपान है !

उल्लेखनीय है कि 21 फरवरी की तारीख को, वर्ष-2008 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया ! इस सन्दर्भ में विचारणीय है कि वर्तमान बंगला देश जो पुर्व मे पाकिस्तान का ही एक अंश था , बंग्ला भाषा के सवाल पर आन्दोलित हुए ,जिसमें अनेक लोगों ने अपने जीवन की आहुतियां दी और अंततः वहाँ के लोगों के पुरजोर विरोध और आंदोलन की वजह से  21फरवरी को अलग राष्ट्र बना ! कहा जाता है कि- विश्व में भाषा के सवाल पर किसी देश के बनने की यह पहली घटना है ! वैसे भाषायी आंदोलन का इसके पुर्व भी एक इतिहास रहा है ! सन् 1066 ई0 में फ्रांस के उत्तरी भागों के निवासी-नारमन लोगों का जब इंग्लैंड पर अधिपत्य था , तब से इंग्लैंड पर फ्रेंच-भाषा थोपी गई – परन्तु एक समय के बाद जब वहाँ के लोगों में जागृति आयी तो इंग्लैंड पर अपने प्रभुत्व की स्थापना के साथ ही उनकी अपनी मातृभाषा- अंग्रेजी वहाँ पर स्थापित हो गई ! संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21फरवरी को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता प्रदान किये जाने की घटना को उपरोक्त बंग्लादेश तथा इंग्लैंड के भाषायी आन्दोलन को एक ऐतिहासिक क्रांति के रूप में देखा जा सकता है !

वर्तमान झारखंड के विकास की दशा-दिशा में भी झारखंड के सबसे बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली तथा जन-जातीय (आदिवासियों) और सदानों  (गैर-आदिवासियों) के बीच की एकमात्र सम्पर्क भाषा-खोरठा की भूमिका अति प्राचीन काल से ही प्रमुख और महत्वपूर्ण रही है ! विकास की राह में हम उत्तरोत्तर आगे बढ़ सकें , इसके लिए यह समझा जाना आवश्यक होगा कि खोरठा भाषा-संस्कृति की कदापि उपेक्षा न हो !

अतः निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत झारखंड सरकार को इसके स्वाभाविक रूप में सहेजने का अनुरोध करते हुए ” खोरठा साहित्य-संस्कृति परिषद् , झारखण्ड अपनी अपेक्षाएं निम्न प्रकार से व्यक्त करता है —

1 – खोरठा को आठवीं (8वीं) अनुसूची में शामिल किया जाए !

2 – झारखंड जन-जातीय एवं क्षेत्रीय अकादमी का गठन किया जाए !

3 – झारखंड फिल्म तकनीकी सलाहकार समिति में खोरठा भाषी सदस्य की अनिवार्यता सुनिश्चित किया जाए !

4 – खोरठा भाषा के लोककलाकारों, लोकगायकों ,के संरक्षण एवं विकास हेतु राज्य सरकार की रात रिक्तियों में सांस्कृतिक कोटे का प्रावधान कर इनकी नियुक्ति की जाए !

5 – झारखण्डी भाषा-संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने वाले लोकसाहित्यकारों , कलाकारों , लोकगायकों को सरकारी स्तर पर पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जाए !

6 – प्राथमिक स्तर पर खोरठा भाषा के शिक्षकों की विधिवत नियुक्ति की जाए !

7 – आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के समाचार वाचन तथा अन्य कार्यक्रमों में खोरठा भाषा की समुचित भागीदारी सुनिश्चित की जाए !

8 – सी0 बी0 एस0 सी0 में मान्यता होने के कारण निजी विद्यालयों के प्रबन्धकों द्वारा भी खोरठा की पढ़ाई सुनिश्चित कराई जाए !

9 – झारखंड रेल स्टेशनों पर रेलवे द्वारा खोरठा में भी अनाउंसमेंट करना सुनिश्चित किया जाए !

10 – खोरठा भाषा की पाण्डुलिपियों का सरकारी स्तर पर प्रकाशन कराए जाएं !

11 – विलुप्त हो रही झारखण्डी लोकविधाओं के संरक्षण हेतु कार्यरत संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाए !

12 – वर्ष-2012 में ही चास(बोकारो) में निर्मित – खोरठा कला, साहित्य-संस्कृति अनुसंधान केंद्र , को उसके उद्देश्यपूर्ति हेतु संचालन समिति का गठन कर हस्तांतरित किया जाए !

13 – झारखण्ड के सभी सभी विश्वविद्यालयों में जन-जातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग स्थापित किए जाएं !

 

  • इस आलेख के लेखक महेन्द्र नाथ गोस्वामी ”सुधाकर” झारखण्ड के जाने माने साहित्यकार, कलाकार व शिक्षाविद हैं. खोरठा के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य पर इनकी काफी अच्छी पकड़ है. वर्तमान में ये भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षक (झारखंड ईकाई) और खोरठा साहित्य-संस्कृति परिषद् (रजि0) से जुड़ कर खोरठा साहित्य के उत्थान में अपनी सेवा दे रहे हैं.

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