भए प्रगट कृपाला : सनातन जीवन मूल्यों के सर्वोच्च प्रतिमान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
राम व हनुमान के आदर्शों और जीवन-संदेशों को धारण करना ही सच्ची पूजा


रामनवमी, अर्थात भगवान श्रीराम का जन्मदिवस. मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम सनातन भारतीय जनमानस के उच्चतम आदर्श हैं, जिनके चरित्र और व्यवहार की मर्यादा का कोई सानी नहीं है. युगऋषि, इस युग में गायत्री के सर्वोच्च मनीषी, संत व समाज सुधारक पंडित श्रीराम शर्मा के अनुसार वे ‘धर्म’ के सबसे बड़े प्रतीक हैं. मनुष्य के हृदय का प्रकाश ही राम है. राष्ट्र व राष्ट्रीयता उनके व्यक्तित्व के कण-कण से प्रतिबिंबित होती है.
सनातन संस्कृति के प्रत्येक त्यौहार को उसके मूल रूप में आत्मसात करने, उसके मूल तत्वों को समझने और संदेशों को आत्मसात करने का आन्दोलन चलाने वाले पंडित श्रीराम शर्मा रामनवमी को लेकर क्या कहते हैं, ये आज इस आलेख के माध्यम से हम आपको बताने का प्रयास करते हैं. दरअसल आज के इस दौर में जब हम अधिकांश पर्व-त्योहारों के बाहरी आवरणों को ही असली समझ बैठे हैं, ऐसे में उनके विचार ज्यादा प्रासंगिक और सामयिक भी हैं.

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यूँ तो अवतार कई हुए, पर इनमें प्रधानता भगवान राम और कृष्ण की ही है. इसका कारण यह है कि इन दो अवतारों का जीवन, शिक्षण और विशेषताओं से भरा पड़ा है, जिनकी मानवीय जीवन को समुन्नत, विकसित बनाने में नितांत आवश्यकता है. भगवान राम की अगर बात करें तो मर्यादाओं का पालन, कर्तव्य के प्रति अविचल निष्ठा, व्यवहार में सौजन्य और अनीति के विरुद्ध प्रबल संघर्ष, ये चारों ही लक्ष्य ऐसे हैं, जिन्हें राम के जीवन के प्रसंगों में पग-पग पर पाया जा सकता है.
जन्म से लेकर लीला समापन तक के सभी प्रसंगों में उत्कृष्ट आदर्शवादिता ही भगवान राम चरितार्थ करते रहे. बालपन में छोटे भाई भरत को विजयी सिद्ध करने और प्रसन्न करने के लिए राम हारने का अभिनय करते हैं. अपनी हेठी भी होती हो, पर छोटों को श्रेय मिलता हो तो अपनी बात को भुला ही दिया जाना चाहिए. बचपन में ही महर्षि विश्वामित्र यज्ञ की रक्षा के लिए उन्हें मांगने आये, तो प्राण हथेली पर रख खुशी-खुशी तपोवन में चले जाते हैं. लाभ तो विश्वामित्र का और यज्ञ की रक्षा में अपने प्राणों का संकट, वे इस तरह नहीं सोचते, वरन् शुभकार्य कहीं भी किया जा रहा हो, कोई भी कर रहा हो, उसमें भरपूर सहयोग करना आवश्यक है.
विमाता कैकेयी वनवास देना चाहती हैं. विमाता को माता से बढ़कर उन्होंने माना और माता की प्रसन्नता के लिए वनवास स्वीकार किया. अधिकार त्यागा और कर्तव्य निबाहा. पिता वचन तोड़ना चाहते हैं, कैकेयी को दिए वचन पूरा करने में आगा-पीछा सोचते हैं. राम उनकी गुत्थी सुलझाते हैं. वन गमन स्वीकार कर उन्होंने पिता को अपनी प्रामाणिकता अक्षुण्ण बनाये रखने तथा वचन पालन का अवसर प्रदान किया.
चित्रकूट में भरत मिलते हैं, वे वापस चलने का अनुरोध करते हैं. राज्य सुख भोगने को कहते हैं. राम अपने भाई को राजा और स्वयं तपस्वी बने रहने में अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं. सुविधाओं से भरे जीवन की अपेक्षा परमार्थ प्रयोजनों के लिए कष्ट कठिनाई सहना श्रेयस्कर मानते हैं, वे सुविधाओं को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं. हारे हुए दुर्बल शरीर वाले सुग्रीव का न्यायानुमोदित समर्थन करते हुए प्रचण्ड बलशाली बालि से जूझते हैं. स्वावलम्बन का जीवन जीकर निःस्वार्थ भाव से छात्र और ऋषियों का नित्य मार्ग साफ करने वाली शबरी की भक्ति को तथाकथित योगी तपस्वियों से बढ़-चढ़कर ठहराते हैं और उसका अभिवादन करने उसके घर पहुँचते हैं. जन्म-जाति के आधार पर ऊँच-नीच की अवाञ्छनीय मूढ़ता पर प्रहार करते हैं और शबरी के जूठे बेर खाते हैं.
सूर्पणखा के रूप और प्रलोभन भरे प्रस्ताव को अस्वीकार करके एक पत्नीव्रत की प्रबल निष्ठा का परिचय देते हैं. असुरता के आतंक से लड़ने में जब समझदार मनुष्य अपनी प्रत्यक्ष हानि देखते साथ नहीं देते, तो नासमझ कहे जाने वाले पिछड़े वर्ग के वानरों की सेना गठित करते हैं और संसार को बताते हैं कि पाप बाहर से कितना ही बड़ा बलवान क्यों न दिखता हो, भीतर से अत्यन्त दुर्बल होता है; और उसके विरुद्ध मनस्वी लोग उठ खड़े हों तो असुरता की बालू की दीवार ढहने में देर नहीं लगती.
भगवान राम के साथी-सहयोगी, मित्र-स्वजन, सभी सच्चे चरित्र वाले हैं. उन्होंने सामयिक लाभ उठाने के लिए खोटे बलशाली लोंगों का साथ लेने के बजाय छोटे मगर सच्चे लोगों का साथ लिया.

जो स्वयं श्रेष्ठ होता है, उसे श्रेष्ठ ही मानते हैं और वे ही उनके सहयोगी बनते हैं. इस प्रकार के घटनाक्रम और अनेक प्रसङ्गों पर कहे हुए उनके वचन ऐसे हैं, जिनमें नीति, धर्म, सदाचार, संयम, परमार्थ, उदारता, अध्यात्म कूट- कूट कर भरा है. रामनवमी के अवसर पर भगवान् राम का जन्म दिन मनाते हुए ऐसे ही घटनाक्रमों और प्रसंगों को याद करना चाइये, ताकि हमें राम- भक्ति के रूप में उनके अनुगमन की प्रेरणा मिले.
रामनवमी के दिन वीर हनुमान की पूजा भी की जाति है. भजन पूजन भले ही हनुमान जी न करते हों, पर उन्होंने अपना शरीर और मन सर्वतोभावेन ‘रामकाज’ के लिए अर्पित किया और समुद्र लाँघना, लंका दहन, पर्वत उठा लेने जैसे कठिन से कठिन कार्य करने को तत्पर रहे. अपनी सुविधा को भूल गये. न विवाह, न बच्चे, न नौकरी, न कोठी, न बंगला, अपने आप को विस्मरण करके ही कोई व्यक्ति भगवान का कार्य कर सकता है और भक्त की कसौटी पर खरा सिद्ध हो सकता है. इसकी जीवन्त शिक्षा हनुमान के चरित्र से मिलती है.
रामनवमी ऐसे ही सन्देशों और प्रेरणाओं से भरी हुई है. रामनवमी के इस पावन पर्व के दिन पूजन के साथ ये समझना भी ज़रूरी है कि भगवान राम के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने के लिए, उनके सन्देशों को अपने ह्रदय में और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाना पड़ेगा. मात्र तिलक लगाने, आरती उतारने और नाम रटने से ही भक्ति का प्रयोजन पूरा नहीं हो सकेगा.

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