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देवशयनी एकादशी : आध्यात्मिकता और संयम का पर्व

4 महीने के विश्राम पर सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु, भोले शंकर संभालेंगे कार्यभार

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नव बिहान डेस्क : देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी या हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 2025 में 7 जुलाई को पड़ रहा है। यह दिन भगवान विष्णु की भक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जो आध्यात्मिक साधना, संयम और तप का समय माना जाता है।

धार्मिक महत्व

देवशयनी एकादशी का महत्व विष्णु पुराण और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में वर्णित है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है, जो सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देती हैं।इस दिन का एक अन्य महत्व यह है कि यह चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है। इस दौरान विवाह, गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं, क्योंकि यह समय आत्मचिंतन और भक्ति के लिए समर्पित होता है। भक्त इस अवधि में सात्विक जीवनशैली अपनाते हैं, मांस-मदिरा का त्याग करते हैं और भगवान विष्णु की कथाओं का श्रवण करते हैं।

व्रत और पूजा विधि

4 महीने के विश्राम पर सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु, भोले शंकर संभालेंगे कार्यभार
4 महीने के विश्राम पर सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु, भोले शंकर संभालेंगे कार्यभार

 

देवशयनी एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन भक्त प्रातःकाल उठकर स्नान करते हैं और पूजा स्थल को स्वच्छ करते हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराकर, फूल, तुलसी पत्र और चंदन से पूजा की जाती है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ और भगवद्गीता का अध्ययन इस दिन विशेष फलदायी माना जाता है।व्रत में फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है, और कई भक्त निर्जला व्रत भी रखते हैं। रात्रि में भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है, जिसमें अन्न, वस्त्र और धन का दान किया जाता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

देवशयनी एकादशी न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व लोगों को संयम, सादगी और आत्मानुशासन की शिक्षा देता है। चातुर्मास में शुरू होने वाली यह अवधि भक्तों को अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का अवसर प्रदान करती है। यह समय पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक है, क्योंकि इस दौरान लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने का प्रयास करते हैं।

आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता

आज के भागदौड़ भरे जीवन में देवशयनी एकादशी जैसे पर्व हमें अपने भीतर झांकने और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने का अवसर देते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि सच्चा सुख भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं, बल्कि आत्मिक संतुष्टि और भक्ति में है। युवा पीढ़ी के लिए यह पर्व एक अवसर है कि वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ें और संयमित जीवनशैली अपनाएं।

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