झारखंड के 25 साल: कृषि, डेयरी और फिशरीज में उल्लेखनीय प्रगति, लेकिन सिंचाई व्यवस्था अब भी बड़ी चुनौती

रांची:प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण झारखंड जब अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, तब यह सवाल लोगों के जेहन में थे कि कि खान-खनिज से परिपूर्ण इस पठारी राज्य में खेती-बाड़ी, मत्स्य पालन, पशुपालन का क्या भविष्य होगा, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भले ही राज्य में कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में कई समस्याएं मौजूद हो, लेकिन पिछले 25 वर्षों में झारखंड में कृषि के क्षेत्र में तरक्की भी खूब हुई है.
दलहन के औसत उत्पादन में झारखंड बेहतर


झारखंड में एक समय ऐसा था जब दलहन की खेती महज एक लाख हेक्टेयर तक में सीमित थी, जो अब आठ गुणा बढ़कर 08 लाख हेक्टेयर हो गई है. आज झारखंड राज्य दलहन उत्पादन में देश में नौवें स्थान पर है और हमारी प्रति हेक्टेयर औसत दलहन उत्पादन 1069kg जबकि वैश्विक औसत 1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ही है.
धान की खेती में भी आगे बढ़ा है राज्य
15 नवम्बर 2000 को बिहार से अलग होकर नए राज्य के रूप में उदित हुआ झारखंड धान की खेती में भी आगे बढ़ा है. यह यहां के अन्नदाताओं की मेहनत का ही परिणाम है कि राज्य गठन के समय जहां करीब 10 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती थी, वह अब बढ़कर 18 लाख हेक्टेयर हो गई है. राज्य में धान की औसत उपज में भी इन 25 वर्षों में काफी बढ़ोतरी हुई है. राज्य में प्रति हेक्टेयर औसत धान उत्पादन एक टन से बढ़कर 03 टन हो चुका है.
रबी के क्षेत्र में अभी भी और बेहतर करने की संभावनाओं के बावजूद पिछला 25 वर्ष उम्मीदों और संभावनाओं वाला रहा है. राज्य बनने के समय झारखंड में रबी फसल के रूप में गेहूं की खेती का रकबा महज 50 हजार हेक्टेयर था, जो अब बढ़कर 03 लाख हेक्टेयर हो गया है. इसी तरह तिलहन की खेती का रकबा बढ़कर 02 लाख हेक्टेयर हो गया है. रबी फसलों की खेती में विकास का ही परिणाम है कि राज्य में अब रबी फसल का कुल रकबा 11 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है.
दूध उत्पादन में भी लगातार आगे बढ़ता झारखंड
अलग राज्य बनने के समय झारखंड में पशुपालन की स्थिति अच्छी नहीं थी, तब राज्य में दूध का उत्पादन 10 लाख टन से भी कम था. अब यह बढ़कर 34 लाख टन हो गया है. राज्य हर दिन 2.5 लाख लीटर दूध का उत्पादन करता है. राज्य गठन के समय दूध के क्षेत्र में अपना कोई ब्रांड नहीं था. संयुक्त बिहार का ब्रांड “सुधा” हुआ करता था. उसी का एक प्लांट झारखंड में था. राज्य बनने के 25 वर्षों के इस सफर में “मेधा” आज झारखंड का अपना डेयरी ब्रांड बन चुका है और यह अन्य ब्रांडों को टक्कर दे रहा है. राज्य भर में मेधा की छह डेयरी प्लांट हैं. रांची में 80 करोड़ की लागत से 20 मीट्रिक टन क्षमता वाले मिल्क पाउडर प्लांट लगाने का शिलान्यास हो चुका है. राज्य के पशुपालकों को प्रति लीटर दूध पर 05 ₹ की अतिरिक्त राशि देने की योजना से पशुपालन को बढ़ावा मिला है.
मत्स्य पालन में झारखंड की तरक्की क्रांति जैसी
झारखंड राज्य ने मछली यानी मत्स्य पालन में विकास मानो राज्य के लिए नीली क्रांति से कम नहीं है.राज्य गठन के बाद जिस राज्य में सिर्फ 14000 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था, वह राज्य आज 3.63 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन कर अपनी आवश्यकताओं का 95% खुद पूरी कर रहा है. मछली के लिए कभी आंध्र और पश्चिम बंगाल पर निर्भर राज्य अब आत्मनिर्भर बनने के करीब पहुंच गया है.
बागवानी से भी बढ़ी उम्मीदें
झारखंड के किसानों के आर्थिक उन्नयन में बागवानी भी अग्रणी भूमिका निभाने को तैयार है. राज्य बनने के समय सूबे में बागवानी का कोई बड़ा आंकड़ा तक मौजूद नहीं है, लेकिन आज करीब 05 लाख हेक्टेयर में बागवानी की जा रही है. बागवानी मिशन बनाकर किसानों को खेती के साथ-साथ बागवानी के लिए भी प्रेरित करने का नतीजा है कि राज्य में बड़े पैमाने पर अब उद्यानिकी हो रही है.
सिंचाई के साधन बढ़ने जरूरी
राज्य गठन के बाद झारखंड का कृषि बजट 400 करोड़ के करीब था जो अब बढ़कर 4000 करोड़ हो गया है. राज्य में सभी फसल मिलाकर उत्पादन भी 35 लाख टन से बढ़कर अब 74 लाख टन के करीब हो गया है, लेकिन एक समस्या जो लगभग जस की तस बनी हुई है वह है कृषि का वर्षाजल पर निर्भर होना. राज्य की कृषि योग्य करीब 38 लाख हेक्टेयर जमीन में से 85% सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भर है.वहीं इस संबंध में भाजपा और कांग्रेस दोनों के नेता मानते हैं कि अगर सिंचाई की दिशा में और बेहतर कार्य होते तो झारखंड की कृषि और अधिक उन्नत होती.

