Nav Bihan
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गायब होने से पूर्व गिरिडीह शहर के बरगंडा में रूके थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, अंग्रेजो से बचते हुए गिरिडीह के रास्ते गोमो पहुंचे थे नेताजी

आजादी के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की नीव को जड़ से हिलाने में रहा था अहम योगदान

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रिंकेश कुमार

गिरिडीह। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” के नारे के साथ आजाद हिन्द फ़ौज का गठन कर देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की 129वीं जयंती पूरा देश मना रहा है। इस मौके पर हम यदि आपसे कहें कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का गिरिडीह की धरती से गहरा ताल्लुक रहा है तो आप शायद इस बात पर सहसा विशवास ना करें, पर ये बात है बिलकुल सत्य। अब इस बात को प्रमाणित करने के कोई लिखित साक्ष्य तो नहीं, पर गिरिडीह के पुराने लोगों, ख़ास तौर पर बंगाली समुदाय के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि अंग्रेजों की आँख में धूल झोंक कर भारत से बाहर जाने में गिरिडीह की भूमिका भी रही है।

 

गिरिडीह शहरी क्षेत्र की अगर हम बात करें तो नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का गिरिडीह से भी जुड़ाव रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान ब्रिटिश हुकूमत को ठेंगा दिखाने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस गायब होने से पूर्व अंतिम बार गोमो स्टेशन पर ही देखे गए थे। पर जानकारों की मानें तो इससे पूर्व वे कोलकाता से गिरिडीह तक बने रेलवे ट्रेक के किनारे किनारे छुपते छुपाते गिरिडीह पहुंचे थे और शहर के बरगंडा स्थित चन्द्रशेखर रॉय के मकान में सिर्फ एक रात के लिए रूके थे। चन्द्रशेखर रॉय मुख्य रूप से बंगाल के दमदम के रहने वाले थे और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौसी के दूर के रिश्तेदार थे। शहर के बरगंडा में उनका फार्म हाउस था, जहां उनके मकान में उस समय रॉबर्ट एल्बर्ड नामक एक अंग्रेज रहा करते थे।

 

नेताजी गिरिडीह पहुंचने के बाद यहां दो तीन दिन तक रूकने वाले थे, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत को जानकारी मिल जाने के कारण वे दूसरे दिन अहले सुबह यहां से एक चारपहिया वाहन से गोमो के लिए निकल गए थे। गोमो जाने के लिए पंजाबी मुहल्ला के रहने वाले एक माइका व्यवसायी ने उन्हें चारपहिया वाहन मुहैया कराया था। बाद के दिनों में आज़ादी के बाद शहर के बंगाली समाज के द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के मौके पर इस गाडी को फूलो से सजाकर शहर में घुमाया जाता था और ये बात बहुत पुराणी भी नहीं है. वर्तमान समय की बात करें तो उक्त रॉय परिवार अपनी पूरी संपत्ति को बेचकर कोलकाता में रहने लगा है। हालांकि उन्होंने अपनी प्रोपटी बेचने के पूर्व खरीददार से आग्रह किया था कि जिस कमरे में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ठहरे थे, उसे वैसे ही संजोकर रखें।

गिरिडीह के अधिवक्ता अरिन्दम बोस की माने चन्द्रशेखर रॉय अपनी पूरी संपत्ति को बेच चुके है। चंद्रशेखर रॉय का करीब दस वर्ष पूर्व निधन हो चुका है। स्व0 चन्द्रशेखर रॉय के पुत्र पूर्णाशीष रॉय, जो वर्तमान में कोलकाता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं, वे उनके मित्र हैं। उन्होंने हमें बताया कि जब वे उनके घर जाते थे तो स्व0 चन्द्रशेखर रॉय उनसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारे में चर्चा करते थे। अगस्त माह 1945ई में जब ब्रिटिश हुकूमत ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गोली मारने का निर्देश जारी कर दिया था, तो उसी वक्त वे कोलकाता से छुपते छुपाते रेल लाईन के किनारे किनारे शाम को करीब 6 बजे गिरिडीह पहुंचे थे और बरगंडा स्थित रॉय साहब के यहां रॉबर्ट एल्बर्ड नामक अँगरेज़ के साथ रहे थे, जो रॉय फॅमिली का मुलाजिम था। उन्होंने बताया था कि रात में उन्हें अपने सूचना तंत्र से पता चला कि अंग्रेज पुलिस कभी भी उन तक पहुंच सकती है तो वे दूसरे दिन ही सुबह करीब पांच बजे जीप से गोमो के लिए निकल गए थे।

इधर इस बाबत गिरिडीह के जाने माने साहित्यकार और इन मामलों के जानकार प्रभाकर कुमार ने कहा कि गिरिडीह की धरती से नेताजी की यादें जुडी हैं और इन यादों को संजोकर रखने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि कम से कम उस कमरे का संरक्षण तो अवश्य होना चाहिए, जिसमें मां भारती के इस महान सपूत ने एक रात गुजारी थी. साथ ही पुराने लोगों से बात कर और इस घटना से जुड़ा यदि कोई भी साक्ष्य कहीं और भी है तो उसको इकठ्ठा कर इसका एक प्रामाणिक दस्तावेजीकरण भी होना चाहिए.

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