आओ स्वयं से होली खेलें
आओ स्वयं से होली खेलें, खुद को ही हम रंग लगाएं।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनायें।।
बैर भाव अब दूर भगाएं, प्यार और सहकार बढ़ाएं।
मिलजुलकर हम रहना सीखें,सबके सहयोगी बन जाएँ।।
आध्यात्मिकता से जीवन के, रंग बैंगनी से रंग जाएँ।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
नील रंग अवनी नभ शोभित, अति अनन्त भाव जगाता।
ह्रदय हमारा हो विशाल यह, शांति धैर्य सद्भाव बढाता।।
नील रंग में रंगकर हम भी, स्नेह प्रेम विश्वास जगाएं।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
आत्मशक्ति संग प्रज्ञा मेधा, विचार क्रांति अभियान करें।
मस्त मयूर कानन मन नर्तन, प्रेम सुधा रसपान करें॥
आसमान में रंग मिलाकर, दिग दिगंत तक बढ़ते जाएँ।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
हरा रंग हरियाली मन की, स्वस्थ सुखी जीवन हो अपना।
मातृभूमि के लिए हमारा, अर्पण हो तन मन धन अपना।।
हरे रंग से रंगकर मन ये, धरती माँ का मान बढ़ाए।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
पीत पवित्र पावन निर्मल मन, त्याग तपस्यामय हो जीवन।
गुरु के आदर्शों में ढलकर, गुरु को ही तन मन हो अर्पण॥
गुरु चरणों का रज धारण कर, गुरु के रंगों में रंग जाएँ।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
नारंगी रंग मान हमारा, राष्ट्र धर्म हो प्राण से प्यारा।
केसरिया बलदायक भी है, संतों का परिचायक भी है।।
मन केसरिया रंग में रंग कर, धर्ममय जीवन बन जाए ।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
लाल रंग है रक्त हमारा, अंग अंग में जोश जगाता ।
सूर्योदय की मधुर लालिमा, सारा जग उर्जा है पाता।।
लाल रंग तो प्रेम रंग है, प्रेममयी जीवन बन जाए।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
इन्द्रधनुष सा जीवन को भी, सात रंग में हम रंग डालें ।
सात चक्र को जागृत करके, अनंत शक्ति स्रोत हम पालें।।
नवल प्रभात के कलरव जैसे, नवल जागृति गां सुनाएं ।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनाएं।।
कवि परिचय
झारखण्ड प्रदेश के गिरिडीह जिला के तिसरी प्रखंड के रहने वाले श्री उमेश यादव 1992 से वर्तमान में अखिल विश्व गायत्री परिवार, शांतिकुंज हरिद्वार के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया डिविजन, टेलीकॉम सेक्शन एवं अन्य कई महत्वपूर्ण कार्यों की जिम्मेदारी एक स्वयंसेवी कार्यकर्ता के रूप में निभा रहे हैं। बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री उमेश यादव की प्राथमिक शिक्षा तिसरी से ही हुई। सातवीं कक्षा से ही इन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण प्रतिभा के लिए छात्रवृति मिलने लगी। उच्च विद्यालय बगोदर से मेट्रिक बोर्ड पास करने के बाद इन्होने सेंट कोलंबस कॉलेज हजारीबाग एवं उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय से इन्टर, स्नातक एवं परास्नातक की पढाई की। अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य से वर्ष 1989 में ही दीक्षित उमेश यादव ने पढाई पूर्ण करने के बाद आकर्षक नौकरी के प्रस्ताव को छोड़कर समाज सेवा का मार्ग चुना और अपना जीवन शांति कुञ्ज हरिद्वार को समर्पित कर दिया। एक कवि और गीतकार के रूप में श्री उमेश यादव ने अपनी अलग पहचान बनायी है। “धर्म तंत्र से लोक शिक्षण” और “मनुष्य में देवत्व का उदय ,धरती पर स्वर्ग का अवतरण” सरीखे सूत्रों को आधार बना कर लिखी गईं इनकी कवितायें और गीत भीड़ में अलग ही स्थान रखती हैं।
उमेश यादव रचित कविता बहुत अच्छी लगी. इससे पाठक को निश्चय ही यह प्रेरणा मिलेगी कि आत्मा में ही वास्तव में परमात्मा का निवास है.मों को कहाँ ढूंढो वन्दे, मैं तो तेरे पास में…. बधाई और अनेक मंगल कामनायें उमेश जी को!
हृदय की गहराइयों से धन्यवाद्।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति उमेश यादव जी द्वारा.
हृदय की गहराइयों से धन्यवाद्